#पदमावती फिल्म से उपजा विवाद अतीत की अच्छाइयों को भूला देने का नतीजा है। धर्म-कर्म से बड़ी कोई शक्ति नहीं ये सीख मेवाड़ के घर-घर में आज भी दी जाती है। ऐसे में हकीकत को नकार किसी के वजूद को हिलाने का गुस्सा जौहर स्थल सहित चारों तरफ दिखा है। शासक कोई भी हो वो अपने निशान छोड़ता है और ऐसे इंतजाम करता रहा की आने वक्त में भी उसका वजूद रहा ये लोग जाने। सब तरफ से निराशा हावी होने पर चिकित्कीय उपचार लेते हुए देव*देवियों,पितर थान,स्थानों पर पीड़ित कोई राहत पाने के लिए नतमस्तक हुआ दिखता,फिर भी कुछ आधुनिक बातों वाले ऐसा कुछ नहीं को ढोंग रचते हैं। कोई भी एक नजर नहीं आता जो टीका टोपी से दूर रहता होगा फिर भी अतीत में कोई शक्ति रही उसको कबूलता नहीं। मेवाड़ की धरा पर अभी भी ऐसे निशान मिल जाएंगे जिनके शोध हो जाएँ तो इतिहास को विकृत करने वालों के कालिख पुत जाए। आज इतिहास पुनरावकलोकन की दौड़ है और वोटों की चाहत में फायदा कौनसा पन्ना पुराना लिखा देगा ये होड़ है। लोग सवाल करते हैं की पदमावती थी भी क्या पर ऐसे लोग स्वयं में झांककर ये बताना नहीं चाहेंगे की उन्होंने अंतिम बार धूप-छाया से समय का अंदाजा आंकलन कब किया था। आज भले ही हमारे पास सुख-सुविधाओं का अम्बार लगा होगा और जैसा पैसा उसके अनुसार रोते हंसते दिखते हैं,लेकिन सुविधाओं से उपजी दुविधाओं से मानसिक तौर पर दिवालिया होते हुए रट्टू तोते से ज्यादा खुद को साबित नहीं कर पाते। हिन्दुस्तान में खुद को बड़ा दिखाने की खातिर अपने से बड़ों को किनारे पटकने का खेल कुछ ऐसा चला की आज स्थितियां सरकारी सिस्टम को भी अंगूठा मन में आये जब दिखाने को तैयार सा रहता है। रही बात #इतिहास #और पदमावती की तो दूर दराज बैठे रहने वाले,बंद कमरों में रहते हुए खुद को बड़ा बना लेने वाले क्या जाने हकीकत। कुछ सोचें तो हकीकत ऐसी उभरकर सामने आने लगती है की इतिहास में हुआ स्थापित सच छिपाने की कारगुजारियां ना जाने कब हो गई। ऐसे में जिसका कोई संबंध किसी बात से ना रहे तो वो अर्थ के अनर्थ ही करता है। ज्यादा समय नहीं आज से पच्चीस-तीस साल पहले भी बड़े बुजुर्ग धूप छाया से समय ज्ञात होने के बारे में बच्चों को बता देते थे पर आजकल खुद को बड़ा मानने वाले लोग कई इसे भी नकार देंगे ? अभी भी ऐसे कई आदरणीय लोग हैं जो पशु-पक्षियों के हाव भाव-चहचाहट सन्नाटे से अच्छा बुरा होने के बारे में बता देंगे। जब ऐसे आंकलन होते रहे हैं तो किसी के होने ना होने पर सवाल उठाने से पहले संबंधित पक्ष के स्थानीय स्तर की जानकारी होना जुटाना में शर्म कैसी।
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