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आखिर कब दम तोड़ेगी हैवानियत?

Think Beyond limits
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समाज बदल रहा है, लोग बदल रहे है. अब लड़का और लड़की में कोई फर्क नहीं
है.जो एक का हक है, वही दूसरे का अधिकार है. आज दुनिया के हर क्षेत्र में
लड़कियां लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है. अब महिला आजाद और
सशक्त है. लेकिन ऐसी मेरी ऐसी विचारधारा पर उस दिन विराम लग गया, जब होली
से एक रात पहले पांच साल की मासूम कविता (बदला हुआ नाम) के साथ ४० साल के
मुन्ना सिंह ने वहशीपन की सारी सीमाएं लांग दी. पहले तो उस शैतान ने उस
मासूम को अधमरा होने तक उसे अपनी हवस का शिकार बनाया. और आखिर में उसे
कूड़े का ढेर समझकर उसके घर के दरवाजे पर छोड़ दिया. घबराए मां बाप उसे
अस्पताल ले गए. एक चमत्कारी ऑपरेशन ने उस बच्ची को बचा तो लिया. लेकिन
उसके बाद न ही वो हसंती नही रोती न ही कोई इच्छा जाहिर करती. बस एक टक
देखती और रात को जब भी उसे अपने साथ हुए उसे हादसे की याद आती तो सिसकती
रहती. शायद ये उस मासूम कविता के लिए अब उसके स्त्री लिंग होने का सबसे
बढ़ा अपराध था. कुछ दिन तक ये पूरा वाक्या हर अखबारों के क्राइम पेज का
ब्रेड बटर बन कर बिका, लेकिन तीन दिन के बाद आबारों में दूसरी हेडिंग लग
गई और उस लड़की के आसपास सन्नाटा छा गया. बस रह गए, तो उसके मजबूर मां
बाप. जो कभी अपनी बच्ची की अधमरी हालत में आंसू बहाते, तो कभी खुद को एक
बच्ची के माता पिता होने पर कोसते. अब शायद आप लोग सोच रहे होंगे मैं एक
बार फिर लड़कियों के अधिकार और सुरक्षा के ऊपर सवाल खड़े करूंगी, या फिर
लोगों में लड़कियों के प्रति दबे वहशीपन पर छिछालेदार लिखूंगी. लेकिन ऐसा
नहीं है. इस बार मेरे मन मैं बस एक ही सवाल है. जो उस रोज से बाद बार बार
उठ रहा है. कि आखिर कब तक इस तरह की मासूम लड़कियों को मिडीया हेडलाइन और
लोक अपना शोक जाहिर करने का विषय समझेंगे. इस पूरे वाक्ये में एक बार भी
किसी व्यक्ति ने उस दरिंदे की हैवानियत और उसे पहचानने की जिज्ञासा क्यों
जाहिर नहीं की? किसी ाी आदमी ने उस शैतान पर कभी न भुला पाने वाला दंड
देने की मांग क्यों नहीं है. कुछ सालों की सजा काट कर वो वहशी फिर से सड़क
पर सीना चौड़ा कर घूमेगा. लेकिन वो मासूम जो अब बिस्तर पर जिंदा लाश की
तरह वक्त गुजार रही है. क्या वो कभी अपने अंधेरे भविष्य को आगे ले जा
पाएंगी? तो जवाब है, कभी नहीं. वो मासूम जिसे ये तक नहीं पता था, जीते जी
बार बार मौत से टकराना किसे कहते है, वो एक अगर आप उसे बच्ची को देते तो
शायद खुद ही महसूस कर लेंगे. इस पूरे हादसे ने जहां एक तरफ मुझे झंझोर के
रख दिया, वही दूसरी ओर कभी न मिटने वाला ऐसा प्रश्न एक बार फिर मेरे जहन
में छोड़ दिया है. कि आखिर कब इन वहशियों को इनके किए की ऐसी  खौफनाक सजा
दी जाएगी. जिसे सुनकर किसी के अंदर भी हैवान जन्म लेने से पहले मौत की
कामना करें.

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