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ये पाखंड नहीं, उसका निजी जीवन है

Think Beyond limits
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मेरे पड़ोस में रहने वाले सुरेश वर्मा बहुत ही धार्मिक प्रवृति के इंसान है. कुछ साल पहले तक कृत्यानंद स्वामी (बदला हुआ नाम) के एक साउथ एक्ट्रेस के साथ अवैध संबंध का मामला मीडिया में आता देख वो सबसे ज्यादा परेशान हुए. क्योंकि वो तथाकथित स्वामीजी के परम भक्तों में से एक थे, उत्तर भारत में जहां भी स्वामी जी अपने सत्संग का तंबू लगाते. तो उसकी पहली पंक्ति में बैठकर वर्मा जी खुद स्वर्ग में होने की अनुभूति करते. लेकिन वर्मा जी के विश्वास ने उस दिन जब टीवी खोला तो अपने बाबा के निजी सबंधों को इस कदर टी.वी चैनल में लाल घेरे के बीच में देख कर भौचक्के रह गए. फिर क्या था, उन्होंने स्वामीजी के अन्य अनुयाइओं के साथ मिलकर अपनी आस्था के मातम को एक विरोध प्रर्दशन में हाय हाय के नारों के साथ जल चड़ाया. सिर्फ वर्मा जी ही नहीं बल्कि स्वामी जी के कई अनुयायी उस दिन आहत हुए .किसी ने अपने घर के मंदिर में रखी उनकी फोटो को कचरे के डब्बे में फेका तो किसी ने प्रर्दशन में भागीदारी दर्ज कराई. जब मैंने इस तरह के माहौल को अपने आसपास के लोगों में महसूस किया. तो अचानक मुझे सबसे पहले बहुत जोर से हंसी आई. फिर मैंने सोचा, कि इंसान को भगवान की पदवी देने वाले ये अनुयायी क्या अपने विश्वास के खुद ही हत्यारे नहीं है. किसी भी व्यक्ति के विचारों को पसंद करना और उन पर अंधा विश्वास करके खुद के विवेक को समर्पित कर देना दोनों ही अलग अलग चीजें है. और दुर्भाग्य है, कि अधिकतर लोग अपने विवेक को समर्पित करते है. अरे….. कोई भी व्यक्ति तो अपने विचारों से भीड़ जुआए या अनुयायी बनाए वो विचारवान हो सकता है. लेकिन भगवान नहीं, वो भी इंसानी व्यवाहर रखता है, किसी महिला या पुरूष की ओर आकर्षित होना, संसार और समाज के लोगों के बीच में आ जाकर कुछ इच्छाओं में लिप्त होना सामान्य बात है. सही और गलत हर तरह के काम वो भी कर सकता है. ऐसे में अगर हम लोग उसे पाखंडी या ढ़ोंगी कहें तो वो मेरी समझ से बिल्कुल सही नहीं है. अगर हम किसी के विचारों को समर्थन करते है, तो इसका अर्थ ये नहीं कि हम उसे परमपिता बना लें. हमें ये सोचना चाहिए, कि कोई भी सतसंग करने वाले व्यक्ति सर्वशक्तिमान नहीं है. बल्कि वो आध्यात्म के विचारों का सौदागर है, जो कि उसका प्रोडक्ट है. जिससे हमें निजी जीवन में शांति देते है. हमें बस उस शांति और सुख को महसूस करना चाहीए. न कि उस व्यक्ति को भगवान समझकर मंदिर में विराजमान कर देना चाहिए.

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