परंपरा
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गोलों के बीच,
तोपों के बीच।
दब गयी आवाज,
चीखों के बीच।।
उड़ रही गंध,
ताजे खून की ।
बरसा रहा जहर,
मानसून भी।।
घुटता है दम ,अब
बारूदी झौकों के बीच।।
फैल गयी काली स्याही,
अब संबंधों पर ।
बारूदी थैले टंग,
गये कंधों पर ।।
अनुबंधों के जले पुलिंदे,
विस्फोटों के बीच।
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