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…भूख

परंपरा
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मां! भूख लगी है….
हां , मेरे बेटे, मुझे पता है। बस थोड़ी देर और रुक जा… अभी तेरे पिता जी बाजार से आटा लेकर आते ही होंगे … और देख न, सामने चूल्हे पर आलू उबल रहे हैं। बस थोड़ी देर के लिए सो जा ….।
मेेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं… मां मुझे बड़ी जोर की भूख लगी है।
मेरे लाल …सो जा… बस थोड़ी देर के लिए सो जा।
मां, तुम झूठ भी बोलती हो…कहती हो आलू उबल रहे हैं, इसमें तो केवल पानी ही उबल रहा है… आलू तो हैं ही नहीं। मां ,मुझे बड़ी जोर की भूख लगी है। मां, तुम बोलती क्यों नहीं …चुप क्यों हो, मैं बाहर जाकर पिता जी को देखता हूं, वह रिक्शा लेकर आ ही रहे होंगे ।
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बेटे , खाना खा लो…. भूख लगी होगी ।
ओह ममी… भूख नहीं है… इस समय तो बिल्कुल भी नहीं। आज शाम दोस्तों के साथ बाजार में चाऊमिन-बर्गर खा लिया था।
बेटे… देख तो सही ,आज मैने तेरी मनपसंद सब्जी बनाई है ।
ओह ममी… नो डिस्टर्ब मी.. मुझे भूख नहीं है, क्यों शोर मचा रही हो।
बेटे , मेरी बात तो सुन, अब इसे कौन खायेगा।
कौन खायेगा…. अरे, किसी जानवर को खिला दो… क्या सब जानवर मर गये… मेरी जान क्यों खाये जा रही हो। रामू…ओ … रामू , सुनता क्यों नहीं । ले , इन परांठों को उठाकर बाहर फेंक दे…। कोई गाय-वाय खा जायेगी। जबतक यह दिखाई देते रहेंगे ,तब तक ममी शोर मचाती रहेंगी।
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मां…मां… देख मैं खाना लाया हूं । मां… मुझे परांठे मिल गये ….मां .. देख ।
कहां से डाका डाल आया… मरे नासपीटे…
नहीं मां… वो सामने रामू काका हैं न… वो गाय को डाल गये थे… वहीं से उठा लाया… मां एक परांठा तो गाय ने अपने मुंह में डाल ही लिया था… बस मैंने झट से खींच लिया… मां, लो तुम भी खाओ.. देखो न कितने परांठे हैं.. पूरे पांच है.. पांच ,खाओ… न । चुप क्यों हो, बोलो न मां…

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