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गौरवशाली अतीत का वारिस है मुरादाबाद

परंपरा
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उत्तर प्रदेश में अवस्थित मुरादाबाद को विश्व में पीतल व अन्य धातुओं पर उकेरी जाने वाली नायाब दस्तकारी या जिगर की शायरी के कारण जाना जाता हो लेकिन महाभारत और मुगलकाल का अतीत समेटे यह शहर वृहद ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व से भी जुड़ा है। साहित्य, ज्योतिष और कला के त्रिभुज को आयामित करने वाले इस नगर के कण-कण में अतीत के इतिहास, संस्कृति एवं साहित्यिक परंपरा की गूंज है। यही वजह रही कि ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए आमद कराते हुए देश के शासक बने अंग्र्रेजों ने मुरादाबाद का महत्व समझते हुए यहां रेलवे के मंडल मुख्यालय, पुलिस ट्रेनिंग सेंटर और कई प्रमुख शिक्षण संस्थान स्थापित किए। शिक्षा के जौहर से लेकर दस्तकारी के हुनर को निखारने का सिलसिला अभी भी मुरादाबाद की सरजमीं पर कायम है। इस आलेख के जरिए मुरादाबाद नगर पर एक परिचयात्मक दृष्टि डालने का प्रयास किया गया है। अगर आपकी सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलती हैं तो जागरण जंक्शन के माध्यम से समय – समय पर मुरादाबाद की गौरवशाली विरासत को क्रमबद्ध प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगा।

रामगंगा नदी के दाहिने पाश्र्व में बसा यह नगर महाभारतकाल में वर्णित पांचाल देश का एक भाग रहा है। पांचाल देश उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में चंबल नदी तक फैला हुआ था। जब पांचाल देश दो भागों में विभक्त हुए तो वर्तमान नगर का क्षेत्र उत्तरी पांचाल में आ गया, जिसकी राजधानी अहिक्षत्र थी। स्कन्दपुराण तथा प्राचीन आर्य ग्रंथों में इस क्षेत्र में अनेक तीर्थों के होने तथा आर्य संस्कृति का प्रमुख केंद्र होने का उल्लेख मिलता है। इन्हीं प्राचीन गं्रथों में वर्तमान मुरादाबाद के क्षेत्र को मध्य देश के अंतर्गत ब्रह्मर्षि देश का भाग बताया गया है।
ईसा से तीसरी शताब्दी पूर्व मुरादाबाद सम्राट अशोक के अधीन रहा । उसके बाद गुप्त वंश के सम्राटों के राज्य का अंग बना यह क्षेत्र सम्राट हर्षवर्धन, कन्नौज के सम्राट यशोवर्धन , पृथ्वीराज चौहान के बाद लम्बे अंतराल तक यह क्षेत्र मुगलों के अधिकार में भी रहा। बारहवीं सदी में यह क्षेत्र कठेरिया राजपूतों के अधीन था। उस समय इस नगर का नाम चौपाला था। 1632 ई. में कठैरिया राजा राम सुख यहां का शासक था। सम्राट शाहजहां के सिपहसालार और सम्भल के गर्वनर रुस्तम खां दक्खिनी ने राजा राम सुख को युद्ध में मार कर इसे जीत लिया था और चौपाला दुर्ग पर कब्जा कर इसका नाम अपने नाम पर रुस्तमनगर रखा। कठैरियों ने इसकी शिकायत शाहजहां से की। शाहजहां ने जब रुस्तम खां से बिना आज्ञा नया नगर बसाने तथा नया नाम रखने का कारण पूछा तो रुस्तम खां ने उत्तर दिया कि उन्होंने शहजादे मुराद के सम्मान में उस नगर का नाम मुरादाबाद रखा है। शाहजहां ने उसे क्षमा कर दिया तथा सम्भल की बजाए मुरादाबाद को प्रांत की राजधानी बना दिया। सन् 1658 में औरंगजेब ने मुहम्मद कासिम खां मीर आतिश को मुरादाबाद का सूबेदार नियुक्त किया। इसके बाद राजा मकरंद राय, एतमादुद्दौला, इंतजामुद्दौला, निजामुलमुल्क चिन कालिच खां, मुहम्मद मुराद, सैफद्दीन खां, हैदर कुली खां, कमरूद्दीन, राजा हरनंद खत्री, अली मुहम्मद, राजा चर्तुभुज, दूंदे खां, रहमत अली, असालत खां, चौधरी महताब सिंह विश्नाई इसके सूबेदार रहे।
सन् 1801 में यह क्षेत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में आ गया। अंग्रेजों ने मुरादाबाद को एक अलग जिला बनाया और उसका कलेक्टर मिस्टर डब्ल्यू लिसेस्टर को नियुक्त किया।
भारतीय जनता अंगे्रजी राज्य से संतुष्ट नहीं थी। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (सन् 1857 की क्रांति) में भी मुरादाबाद का उल्लेखनीय योगदान रहा। मुरादाबाद क्षेत्र में इसका नेतृत्व मौलवी मन्नू ने किया। मई 1857 में अंग्रेजों से युद्ध के दौरान मौलवी मन्नू की मृत्यु के बाद क्रांति का संचालन नवाब मज्जू खां के हाथों में आ गया। नवाब मज्जू खां ने मुरादाबाद को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया और स्वयं को यहां का शासक घोषित कर दिया।
क्रांति दमन के दौरान नवाब मज्जू खां को अंग्रेजों ने गोली मार दी तथा अनेक क्रांतिकारियों को फांसी पर लटका दिया गया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम असफल होने पर यह क्षेत्र पुन: अंग्रेजों के अधिकार में आ गया।
राष्ट्रीय आंदोलन में भी मुरादाबाद की सक्रिय भागीदारी रही। इसके नायक सूफी अम्बा प्रसाद रहे। सन् 1897 में अंग्रेजों ने इन्हें डेढ़ वर्ष की सजा करके जेल में डाल दिया। ईरान की जेल में उनकी मृत्यु हुई। देश को आजाद कराने का मुरादाबाद का जज्बा उसके बाद भी नहीं थमा और मुरादाबाद की जमीन महात्मा गांधी के दौरे की भी गवाह बनी। 1921 में मुरादाबाद में कांग्रेस के अधिवेशन के बीच ही असहयोग आंदोलन की रूपरेखा को अंतिम रूप दिया गया। आजादी की लड़ाई में मुरादाबाद के दाऊदयाल खन्ना, प्रो.रामशरण, शंकरदत्त शर्मा, बनवारी लाल रहबर, भगवत शरण, अलीमुद्दीन, जीवाराम, मो. अब्दुल कय्यूम, मौलवी अब्दुल सलाम, रामकुमार अग्रवाल, मु. इमामुद्दीन हादी, काजी अब्दुल गफ्फार, मौलवी किफायत अली काफी का उल्लेखनीय योगदान रहा।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान नगर में सामाजिक परिवर्तन की भी लहर चली। आर्य समाज, अछूतोद्धार, विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा को लेकर चलाए गए आंदोलनों में भी यहां के निवासियों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। यही नहीं मुरादाबाद स्वामी दयानंद सरस्वती की उपस्थिति का भी गवाह बना। इतिहास में 1876 व 1879 में स्वामी दयानंद सरस्वती के दो दौरे दर्ज हैं। यहां उन्होंने आर्य समाज मंडी बांस की स्थापना भी की।

नगर की सांस्कृतिक विरासत भी काफी समृद्ध रही है। संगीत के क्षेत्र में सितार वादक मसीत खां, तबला सम्राट अहमद जान थिरकवा, सारंगी वादक शराफत हुसैन खां, साबरी खां मुरादाबाद के ही थे। यहां के व्यास परिवार का संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा है। संगीतज्ञ बुलाकी व्यास के छोटे भाई पुरुषोत्तम व्यास कई साल शेखपुरा स्टेट (लाहौर) तथा आवागढ़ रियासत (मध्यप्रदेश) में धर्मगुरु तथा संगीत गुरु रहे। उनके पुत्र मदन मोहन व्यास ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। वर्तमान में भी यह परिवार इस परंपरा का निर्वहन कर रहा है।
रंगमंच के क्षेत्र में पारसी रंगमंच सम्राट मास्टर फिदा हुसैन नरसी तो फिल्म निर्माण के क्षेत्र में पं. नरोत्तम व्यास ने मुरादाबाद को गौरवान्वित किया। रामलीला की मुरादाबाद शैली विशेष रूप से चर्चित रही है। आज भी यहां की विभिन्न नाट्य संस्थाएं देश के विभिन्न हिस्सों में रामलीला मंचन करती हैं। रामसिंह चित्रकार, डा. ज्ञान प्रकाश सोती का रंगमंच के क्षेत्र में अपूर्व योदान रहा। इस परंपरा को आज भी अनेक रंगकर्मी आगे बढ़ा रहे हैं।

साहित्य के क्षेत्र में भी इस नगर का उल्लेखनीय योगदान रहा। हिंदी साहित्य में लाला शालिग्राम वैश्य, ज्वाला प्रसाद मिश्र, बल्देव प्रसाद मिश्र, कन्हैया लाल मिश्र, ज्वाला दत्त शर्मा, नरोत्तम व्यास, सर्वेश्वर सरन सर्वे, दयानंद गुप्ता, पृथ्वीराज मिश्र, मदन मोहन व्यास, शंकर दत्त पाण्डे, दुर्गादत्त त्रिपाठी, रामावतार त्यागी, कैलाश चंद्र अग्रवाल, सुरेन्द्र मोहन मिश्र, मनोहर लाल वर्मा, वीरेन्द्र मिश्र, अंबा लाल नागर तो संस्कृत साहित्य में मिश्र बंधु, श्याम सुंदर, जयंती प्रसाद उपाध्याय, पं. जीवाराम उपाध्याय, उमेश दत्त शास्त्री, रामशरण त्रिपाठी उल्लेखनीय नाम हैं। उर्दू साहित्य में मुफ्ती मोहम्मद सादउल्लाह, हाफिज मोहम्मद हुसैन मुरादाबादी, सैयद किफायत अली काफी, जिगर मुरादाबाद, कमर मुरादाबादी, कैफ मुरादाबादी, गौहर उस्मानी का सक्रिय योगदान रहा। वर्तमान में भी नगर के अनके साहित्यकार इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं।
प्रकाशन के क्षेत्र में लिटरेचर सोसायटी, आर्य भास्कर प्रेस, हिमालय डिपो प्रकाशन, सनातन धर्म प्रेस, लक्ष्मी नारायण प्रेस, प्रदीप प्रेस, वैदिक पुस्तकालय, मानसरोवर साहित्य निकेतन, कुमार प्रकाशन, बाल साहित्य मंडल, प्रतिभा प्रकाशन, दुर्गा पब्लिकेशन्स मुख्य प्रकाशन संस्थान रहे। कुमार प्रकाशन की प्राइमरी कक्षा का ‘कायदाÓ पुस्तक तो अक्षर ज्ञान के लिए देशभर में प्रसिद्ध रही।
पत्रकारिता के क्षेत्र में 1885 में प्रकाशित ‘आर्य विनयÓ संपादक पं. रुद्रदत्त शर्मा को नगर का हिन्दी में प्रकाशित पहला पत्र माना जाता है। महात्मा नारायण स्वामी ने 1896 में यहां से उर्दू साप्ताहिक ‘मुहर्रिकÓ का प्रकाशन शुरू किया था। एक साल बाद ही इस साप्ताहिक का हिन्दी संस्करण ‘आर्य-मित्रÓ शुरु हुआ। मुखबिर-ए-आलम, सनातन धर्म पताका, अबला हितकारक, बरनवाल चंद्रिका, चिकित्सा शास्त्र संबंधी मासिक वैद्य, शंकर साप्ताहिक, साहित्यिक मासिक प्रतिभा, अरुण, साथी, प्रदीप, तंत्र प्रभाकर, प्रदेश पत्रिका, बाल रवि, युगमराल, हास-परिहास, उल्लेखनीय पत्र-पत्रिकाएं रही हैं।

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