Menu
blogid : 12800 postid : 1283246

रेलवे में फ्लैक्सी किराया प्रणाली

rastogikb
rastogikb
  • 46 Posts
  • 79 Comments

एक  कहावत है ,  चौबे जी गए छब्बे बनने लेकिन बन के लौटे  दुबे।  या फिर आधी छोड़ पूरी को धावे, आधी मिले न पूरी पावे।

इस तरह की कहावते आज के समय में  भारतीय रेल के अधिकारियो  के ऊपर पूरी तरह से चरितार्थ हैं।

इन अधिकारियों ने मुंगेरी लाल के  हसीन  सपनो की तरह,  सपना देखा कि अगर ट्रेनों में विमानों की भांति फ्लैक्सी किराया प्रणाली लागू  कर दिया जाए तो रेलवे को कितनी अतिरिक्त कमाई मुफ्त में हो जाएगी।  पता नहीं किस अर्थशास्त्री  ने जोड़ -घटाना, गुणा – भाग करके इन्हें बता दिया कि  यदि केवल राजधानी , दुरंतो, शताब्दी ट्रेनों के किरायों में ही  विमानों की भांति  फ्लैक्सी किराया प्रणाली लागू कर दिया  जाए तो रेलवे को 500 करोड़ रूपये की अतिरिक्त कमाई हो जाएगी। बस फिर क्या था आनन – फानन में  निर्णय लेते हुए किराये में अतिरिक्त वृद्धि 9  सितम्बर 2016  से  कर दी। अपने निर्णय में यह भी जोड़ दिया कि यह स्कीम प्रायोगिक है यानि कि पब्लिक पर एक्सपेरीमेंट किया जा रहा है।

जेब काटने की  नई दवा ईजाद की है तो एक्सपेरीमेंट भी हम पर ही किया जायेगा।

अब इन्हें कौन समझाए कि इस समय हिंदुस्तान में कई एयरलाइन्स हैं जिनमे कम्पटीशन होना भी चाहिए वही ट्रेन  में कोई कम्पटीशन तो है नहीं।  कायदे में तो इन पर MRTP   (Monopolies and Restrictive Trade Practices) Act के तहत कार्यवाही होना चाहिए।

मैंने जब इस समाचार को पढ़ा तो गुस्सा आया ,  जो कि स्वाभाविक ही है।  अरे भाई आप सरकार चला रहे हो , वही सरकार जिसे जनता ने जनता के लिए चुना है , कोई बनिया की दुकान नहीं कि जहाँ जरा  मांग ज्यादा क्या हुई किराया बढ़ा कर जेब गर्म करनी शुरू कर दी।  इस तरह से तो आप हमारी मज़बूरी का फायदा उठाना चाहते हैं।  एक छोटी सी प्रतिक्रिया भी इसके विरोध में फेसबुक पर लिखी।

लेकिन ताज्जुब मुझे इस बात पर हुआ कि कई लोगो ने इस तरह की किराये वृद्धि की निंदा करने की जगह इसके पक्ष में लंबे चौड़े लेख लिख डाले।  लोगो ने लिखा  कि VIP  ट्रेन में सफर कर रहे हो तो अधिक किराया देने में क्या तकलीफ।  मुझे लगता है यह  वह लोग हैं,  या तो आँख मूंद कर सरकार के हर फैसले पर अपनी मुहर लगा देना चाहते हैं या फिर इनके पास बेइन्तिहाँ पैसा है तभी  इन्हें  खर्च करते हुए दर्द नहीं होता है।

अब इन्होंने  यह समझने की जरुरत नहीं समझी कि इन ट्रेनों का किराया तो  वैसे भी अन्य ट्रेनों के मुकाबले डेढ़ गुना तो पहले से ही है ।

खैर अब आता हूँ मुद्दे पर , आज यह बात दोबारा उठी तो क्यों उठी।  तो भाई  घटना क्रम कुछ इस तरह है ,  मुझे 6  अक्टूबर को  पता लगा कि आज ही बंगलौर जाना है , उम्मीद तो नहीं थी परन्तु देखता क्या हूँ कि राजधानी में  2 टीयर AC में 61 सीटे  खाली  हैं वहीँ 3 टीयर AC में  60   सीटे  खाली   थी लेकिन  नए किराये की वजह से 3 टीयर AC  का किराया 4000 /- से कुछ अधिक  है  और  2 टीयर AC का किराया 6000 /- से अधिक  है।

जबकि प्लेन में एक हफ्ते आगे की टिकट 4000 /- में मिल रही थी।  अब 28 घंटे ट्रेन में गुजारने  से कहीं ज्यादा अच्छा था कि 3 घंटे में पंहुचा जाय , क्यों जाऊं ट्रेन से , निश्चय किया कम पैसे में कम समय में प्लेन से  जाऊंगा।

उस दिन राजधानी में  खाली  सीटो की यह पोजीशन शाम  साढ़े 6  बजे की थी,  जबकि डेढ़ घंटे के बाद ट्रेन  छूटनी  थी।  कितना नुक्सान हुआ रेलवे का (61X 4000 +60 X  3000 =425000/- )  कमाते  परंतु  ( 6000X 61 +60 X 4000 =606000 )  606000  कमाने के चक्कर में 425000 भी गँवा दिए।

अच्छा यह केवल 6 अक्टूबर की ही बात नहीं है , इस लेख को लिखने से पहले मैंने आज फिर से चेक किया , दिल्ली से बॉम्बे जाने  वालो की सबसे ज्यादा भीड़ होती है तो वही चेक करने लगा।  मुम्बई  राजधानी में  साढ़े 3 बजे ,   2 टीयर AC   में 98 सीटे और 3 टीयर AC में 213 सीटे गाड़ी छूटने से एक घंटे पहले तक खाली थी।    वहीँ अगस्त क्रांति राजधानी में तो 2 टीयर AC में 136  सीटें और 3 टीयर AC में  275   सीटें खाली थीं।  क्योकि इन ट्रेनों में किराया 2 टीयर AC  का 4105 /- रूपये और 3 टीयर AC का 2760 /- रूपये है।  जिसमे रेलवे 1185 /- रूपये सेंकेंड AC में अतिरिक्त चार्ज कर रही है एवं थ्री  टीयर AC में 650 /- अतिरिक्त चार्ज कर रही है।  अब इस तरह का बढ़ा हुआ किराया  वही देगा जिसकी कोई मज़बूरी होगी वरना तो इससे  कम पैसे देकर  हवाई जहाज से जाना  ज्यादा पसंद करेगा।

सोंचने की बात है कि यह तो केवल एक रूट की ट्रेन में इतना बड़ा  घाटा हुआ है और जो पुरे भारत में चल रही ट्रेनों से कितना बड़ा घाटा हो रहा होगा। जिन अधिकारियो ने 500 करोड़ कमाने के चक्कर में यह  स्कीम बनाई है अब उन्ही के वेतन से इस घाटे की भरपाई करनी चाहिए।  शायद तीन महीने के बाद इस स्कीम को बंद करना पड़े , बल्कि बंद करना पड़ेगा तब क्या उन अधिकारियो की  जबावदेही तय होगी।  यह मोटी – मोटी  तनख्वा लेने वाले क्या एक्सपेरिमेंट करने के लिए बैठाए गए हैं कि लगाओ  चूना जितना लगा सकते हो।

सुरेश प्रभु जी कृपया इसे पढ़े एवं अपने अक्षम एवं  अकर्मण्य अधिकारियों   को बताये कि मुंगेरी लाल की तरह हसीं सपने देखना बंद कर दें।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh