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शिर्डी के साईं बाबा

rastogikb
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यह विचार कई बार दिमाग में कौंधता है कि शिर्डी के साईं बाबा  उर्फ़ चाँद मियाँ एक मुस्लिम फ़क़ीर थे पता नहीं किस तरह रातो – रात सनातन धर्म में प्रवेश कर गए और सनातन धर्म के  मंदिरो में उनकी मूर्ति स्थापित करके पूजा होनी शुरू  हो गई।

देखा जाय तो भारतवर्ष में बहुत से पहुंचे हुए संत , महात्मा हुए हैं।  और  वह लोग करिश्माई व्यक्त्तिव के संत होते थे परन्तु किसी को भी सनातन धर्म में  भगवान के बराबर रख कर नहीं पूजा गया या जाता है ।  अपवाद केवल  शिर्डी के साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियाँ हैं ।

हालांकि बहुत से लोग इसे कांग्रेस की एक चाल मानते हुए शंकराचार्य के खिलाफ हो गए हैं।  वह इसे एक राजनीतिक साजिश मानते हैं ;परन्तु यह बात तो सभी को स्वीकार करनी ही पड़ेगी कि लाखो लोगो को तो यह पता ही नहीं था कि असल में शिर्डी के साईं बाबा कौन  हैं।  उन्होंने एक सत्य से लोगो को अवगत कराया है।  इसके लिए मै बिना किसी लाग -लपेट  के उन्हें साधुवाद देता हूँ कि कम से कम उन्होंने इतनी हिम्मत तो दिखाई और एक सच सभी के सामने रखा वरना बहुत थोड़े से लोग ही इस सच्चाई को जानते थे।

वापस फिर उसी विषय पर आता हूँ कि आखिर कैसे उन्हें भगवान राम , कृष्ण , विष्णु , हनुमान जी के बराबर बैठा दिया गया।

इसे कहते हैं मार्केटिंग , बहुत अच्छी  मार्केटिंग की गई है उन्हें भगवान बनाने के लिए।

मै किसी भी साधू – संत , फ़क़ीर के खिलाफ नहीं हूँ ; परन्तु यह भी  तो स्वीकार नहीं किया जा सकता कि एक व्यक्ति की मूर्ति को  सनातन धर्म के  मंदिरो में  स्थापित करके भगवान राम , कृष्ण , विष्णु , हनुमान , या अन्य देवी – देवताओ  के बराबर पूजा की जाय।

आज के हालत यह हैं   कि शिर्डी , सनातन धर्म के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है।  लाखो लोग हर साल उनके दर्शन के लिए जाते हैं।  लाखो – करोडो रूपये का चढ़ावा वहाँ पर चढ़ता है।  कारण वही है कि जबरदस्त मार्केटिंग की गई है और इंसान तो लकीर का फ़क़ीर होता ही है।  एक से दूसरा , दूसरे  से तीसरा , और तीसरे  चौथा , इस  तरह से पिछले कुछ वर्षो में अप्रत्याशित रूप से सांई भक्तो की वृद्धि हुई है।

अब कुछ साईं भक्त  कहेंगे कि हमें वहाँ जाने से फंला – फंला फायदे हुए।  इसका सीधा सा जबाव है कि कष्ट तो हर मनुष्य के जीवन में आते हैं  और उनका निवारण भी एक समय अवधि के लिए तय है।  यह प्रकृति का नियम है।  कुछ लोगो का निवारण जल्द हो जाता है कुछ का देर से और इस बीच अगर कोई उसे किसी दरगाह या फ़क़ीर के पास मन्नत मांगने के लिए भेज देता है।  और यह वक्त वह होता है जबकि प्रकृति उसके कष्ट का निवारण  करने जा  रही होती है  तब मनुष्य यही समझता है कि उसके कष्ट का निवारण फलांने मंदिर , दरगाह या फ़क़ीर की दुआ से हुआ है जबकि यह सच नहीं है परन्तु उसका विश्वास उस मौलवी , फ़क़ीर पर अटूट हो जाता है और हर अपने मिलने वाले को वहाँ पर जाने के लिए प्रेरित करता है।  कुछ इसी तरह से सांई की भी मार्केटिंग की गई है जो कि अब सबके सामने है।

अंत में सच तो यह है कि मनुष्य कितनी भी मन्नते कर ले  , दरगाह होकर आ जाय या फ़क़ीर के पास चला जाय , जो कर्म के आधार पर कष्ट उसके लिए लिखे हैं उसे कोई भी खत्म नहीं कर सकता, टाल नहीं सकता ।  वह कष्ट तो उसे भोगने ही होंगे।  यही प्रकृति का न्याय है।


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