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बिहार के इंटर विज्ञान और कला के टॉपर से जुड़े मामले प्रकाश में आने के बाद शिक्षा मंत्री द्वारा टॉपर विद्यार्थियों के इंटरव्यू लेने का फैसला बिलकुल सही है. बिहार में पूर्व से ही शिक्षा व्यवस्था और परीक्षा पद्धति शक के घेरे में रहा है. तात्कालिक रूप से तो ये कदम बिहार के छवि को धूमिल होते-होते बचा पायेगी. किन्तु शिक्षा व्यवस्था को तंदरुस्त किये बिना भविष्य में परीक्षा में ऐसे भ्रष्टाचार नहीं होंगे इसकी गारंटी देना मुश्किल है. अतः जरुरी है कि बच्चो के साथ-साथ अभिभावक को भी जागरूक किया जाये. शिक्षा माफियाओं की पहचान कर उनके खिलाफ सख्त-से-सख्त कार्रवाई की जाये. जिन विद्यालयों में शिक्षा और परीक्षा के नाम पर इस तरह के गोरखधंधे हो रहे हैं उनकी सम्बद्धता समाप्त करते हुए नियमानुकूल क़ानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए. विद्यालयों में छात्र एवं शिक्षकों की नियमित उपस्थिति, पठन-पाठन का समुचित माहौल, नियमित साप्ताहिक और मासिक जांच परीक्षा का आयोजन, लेखन और भाषण प्रतियोगिता का आयोजन इत्यादि बच्चों में पढाई के प्रति रूचि पैदा करने में सहायक होते हैं. पढाई में निरंतरता होनी आवश्यक है. आज-कल बच्चों के शिक्षा के प्रति अभिभावक की जिम्मेदारी स्कूल और कोचिंग में भर्ती करने मात्र से समाप्त समझी जाती है. वही शिक्षक अपने सिमित निर्धारित घंटों के वर्ग में पढ़ा देने मात्र को अपनी कर्तव्यपरायणता का परिचय देते हैं. लेकिन आज जरुरत है नियमित शिक्षक-अभिभावक संवाद की, सामाजिक नियंत्रण की. बच्चों को पाठ्यक्रम के आलावे उनके सर्वांगीण विकास हेतु अन्य गतिविधियों का आयोजन किये जाने की भी आवश्यकता है.
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