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स्त्री : कुलपति और कोर्ट

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बीते गुरुवार को ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में रह रही महिला को गुजारा भत्ता के अधिकार और मानक तय करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में प्रयुक्त भाषा पर अगले दिन एडिशनल सॉलीसीटर जनरल (एएसजी) इंद्रा जयसिंह ने आपत्ति की। उन्होंने कहा फैसले में आए शब्द ‘रखैल’ (अंग्रेजी शब्द : कीप) को हटाए जाने के लिए वह अर्जी दाखिल करेंगी।
कुछ दिनों पहले वद्र्धा विश्वविद्यालय के कुलपति विभूतिनारायण राय ने ‘नया ज्ञानोदय’ को दिए साक्षात्कार में ‘छिनाल’ शब्द का इस्तेमाल किया था। तब साहित्य जगत में उठे बवंडर से बहुत कुछ दाखिल-खारिज हुआ।
जेरे-बहस मुद्दआ यह कि आखिर ऐसा क्या है कि श्रेष्ठ संस्थाओं में बैठे श्रेष्ठीजन ऐसे शब्द चाहे-अनचाहे इस्तेमाल कर लेते हैं? इसके जवाब साइंस के शोध मर्द के ‘जींस’ में तलाशेंगे, समाजशास्त्री समाज की संरचना में, फ्रायडवादी मस्तिष्क में झांकने की बात करेंगे और राजनीतिज्ञ राजनीति करेंगे। जबकि कुल जमा मामला मिला-जुला है।
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एएसजी इंद्रा जयसिंह ने जिस ‘रखैल’ शब्द पर आपत्ति की, उसे ‘द सेकेंड सेक्स’ की लेखिका सीमोन द बोउवार ने इस प्रकार चिह्नित किया है :
-रखैल चाहती है कि उसे व्यक्ति के रूप में सम्मान समाज में मिले। इस उद्देश्य की सफलता उसकी आकांक्षाओं को बढ़ा देती है।
-रखैल जनमत का सम्मान करती है। वह अपनी वैयक्तिक इच्छा और यंत्रणाओं को अपने तक सीमित रखती है। वह सामाजिक मान्यताएं स्वीकार करती है। अपनी सफलता के लिए उसे लंबी सीमा तक दासता स्वीकार करना पड़ती है।
-उसका सबसे बड़ा दुर्भाग्य उसकी आत्म-निर्भरता व स्वतंत्रता का हजारों तरह की पर-निर्भरताओं में बदल जाना है। उसकी स्वतंत्रता नकारात्मक होती है।
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कोर्ट और कुलपति, दोनों मामलों में आपत्ति भाषा को लेकर है। वर्तमान समाज और उसकी व्यवस्था की तरह हमारी भाषा भी पुरुषों द्वारा बनाई गई है। हमारी भाषा ‘पुल्लिंग-केंद्रित’ है। इसमें स्त्री के स्वर अनुपस्थित हैं। गौर करें :
-प्रचलित वर्चस्ववादी भाषा स्त्री की वाणी नहीं बन पाती और बहुत कम लेखिकाएं (इसे ‘समाज’ पढ़ें-ले.) स्त्री के लिए निजी भाषा खोजन की चिंताएं करती हैं। ‘वूमन्स वर्ड’ में एनी लेक्लर्क ने जब कहा कि ‘हमें भाषा की खोज करनी होगी अन्यथा हम नष्ट हो जाएंगी’ तो वे दरअसल एक ऐसी भाषा खोजने की बात कर रही हैं जिसमें ‘स्त्रीत्व’ की रक्षा हो सके। स्त्रियों को जो भाषा मिलती है वह पुल्लिंग नियंत्रित है।
-दुनिया की तमाम बड़ी लेखिकाओं को प्रचलित भाषा अपूर्ण और लिंग भेदी लगी है और नई भाषा वे आसानी से बना नहीं सकी हैं।
(निबंध : स्त्रीवादी विमश की शुरुआत-सुधीश पचौरी)
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कोर्ट ने एएसजी से पूछा कि क्या ‘कीप’ की जगह ‘कॉन्यूबाइन’ शब्द का प्रयोग ठीक होता? साधारण अर्थ में अंगे्रजी शब्दकोष दोनों को समानार्थी बताते हैं। किसी तरफ से पकडि़ए कान, तो कान है!
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