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मेरी मर्जी

मेरी बात
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हर रोज की तरह आज सुबह जब मैंने अखबार उठया, तो मेरी मर्जी के हिसाब से मैंने अखबार का सम्पाद्किय पृष्ठ पढ्ना शुरु कर दिया ।जहाँ मुझे दीपिका पादुकोण की एक विडियो “MY CHOICE” का जिक्र मिला और अखबार ख्त्म करने के बाद सबसे पहले मैंने युट्युब पर दीपिका की “MY CHOICE” देखी। इसके साथ ही मैंने एक और विडियो देखी जिसमे एक पुरुष मॉड्ल ने अपनी चॉईस रखि है।
इन दोनो विडियोस मे अपनी-अपनी मर्जी की बात कही गई है। कोई अपने मर्जी के हिसाब से कपडे पहनना चहता है, तो कोई अपने मर्जी से दाढी रखना चाहता है। कोई कहता है मेरी मर्जी मै तुम्हे कुछ समय के लिये प्यार करू या हमेशा प्यार करता रहूँ। कोई कहता है मेरी मर्जी मै शादी से पहले किसी के साथ सेक्स करू या शादी के बाद भी किसी गैर मर्द के साथ सेक्स करू। कोई कहता है मै ये करू कोइ कहता है मै वो करू…………..सबको अपनी मर्जी करने की आज़ादी चाहिये।
बात उचित भी है कि इन्सान को अपने मर्जी के हिसाब से ज़िंदगी जीने का अधिकार होना चाहिये और शायद समाज ने हमे अपनी मर्जी करने का हर वो आधिकार दिया है,जैसा एक सभ्य समाज मे करना उचित है। और समाज ने जिन कार्यो पर हमे अपनी मर्जी चलाने का अधिकार प्रदान नहि किया है, शायद वो कार्य एक सभ्य समाज के लिये उचित नही है। लेकिन फिर भी यदि हम समाज से किसी भी प्रकार कि कोई पाबंदी नही चाहते है, तो क्या हम उन सभी समस्याओ का सामना करने के लिये तैयार है,जो ऐसा करने पर हमारे सामने आयेंगे ? क्या वास्तव मे हमारे लिये हर एक क्षेत्र मे अपनी मर्जी चलाना उचित होगा? क्या वस्तव मे समाज से सभी बंदिसे सारी पाबंदिया हटा दी जानी चाहिये ? क्या वास्तव मे समाज मे हर एक को अपनी मर्जी करने की पूरी छुट देनी चहिए ??
ज़रा सोचिये क्या होगा जब समाज मे हर कोई अपनी मर्जी करने लगेगा ? सोचिये कि आप घर से ऑफिस जाने के लिये रिक्शा करना चाहते हो, और रिक्शे वाला आपको यह कह कर मना कर दे कि “आज मेरा मूड नही है उधर जाने का”, तो आपको कैसा लगेगा ? सोचिये कि आप ऑफिस से थके हारे घर आये और अपने पत्नी से एक कप चाय बनाने को कहे और वो कहे, आज मेरा मन नही है चाय बनाने का, तो आपको कैसा लगेगा ? सोचिये कि आप अपने पति से किसी कार्य के लिये कुछ पैसे मांगे और वो मना कर दे , सोचिये कि आपके साथ कोई घटना हो जाये और आप किसी से मदद मांगे और वो मना कर दे, तो आपको कैसा लगेगा ??

जाहिर सी बात है हम मे से किसी को भी ये सब अच्छा नही लगेगा, लेकिन क्यूँ? क्या बुराई है जो एक रिक्शे वाला या हमारे यार दोस्त, पति या पत्नि, या समाज का हर व्यक्ति अपने मर्जी से काम करे ? यदि हम खुद अपने लिये समाज मे अपनी मर्जी करने की छुट चाहते है, तो समाज का हर व्यक्ति भी तो अपने मन की करने को आज़ाद है। इसमे नाराज़ होने वाली कौन सी बात है? और यदि फिर भी हमे गुस्सा आता है, तो बात साफ है कि हम चहते है कि समाज के हर व्यक्ति को उसके मन की करने की आज़ादी ना मिले। और यदि ऐसा है तो हमे भी हर क्षेत्र मे अपने मन की करने का कोई अधिकार नही है। और शायद इसी लिये ये कहा जाता है कि “केवल अपने मन की करनेवाला इंसान भी कोइ इंसान है” ।
क्योंकि एक सभ्य समाज के लिए यह जरूरी है कि वहा कुछ नियम-कानून लागू हो, जिसके दायरे मे रह कर ही कोई इंसान कुछ करे। कुछ भी करने से पहले इंसान को ये सोचना पडे कि वो जो करने जा रहा है, क्या ऐसा करना इस समाज मे उचित है? तभी जा कर एक सभ्य समाज का उद्य होगा। और फिर हमारा देश तो अपनी सभ्यताओ और संस्कृति के लिये जाना जाता है। हमे अपनी सभ्यताओ और संस्कृति के दायरे मे रह कर ही कोइ कार्य करना चाहिये, ताकि हमारेदेशका गौरव हमेशा बना रहे।
अंतत: बस यहि कहना चाहुंगा कि “केवल अपने मन की करनेवाला इंसान कोई इंसान नही होत” ।

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