मेरी बात
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क्यु ये दुनियालगतीअजीबहै।
आपस मे लड्ते है लोग,क्या यही हमारी तह्ज़ीब है।।
क्या अपने क्या बेगाने,सबसे बढ्ने को आगे।
लगाते हम इतना क्यु ज़ोर् है॥
बढ के आगे सभी से, खो जाते किस ओर।
तोड रिश्ते पुराने, बढ जाते है किस ओर्॥
क्या यही है ज़िंदगी, अपना कैसा ये संसार है।
इस भागदौड़ भरी दुनिया मे रिश्ते खोता इनसान है॥
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