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गुल्लक के चंद सिक्के औऱ योगी राज के 100 दिन…

मेरी बात
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yogi ke 100 din

मंगलवार 27 जून 2017….उत्तर प्रदेश में योगी राज के 100 दिन एक-एक कर ठीक वैसे ही पूरे हो गए, जैसे एक-एक पैसा जोड़कर गुल्लक में एक रुपया बनाया जाता है। जैसे-जैसे गुल्लक में पैसों की खनक कम होने लगती है, वैसे-वैसे मन प्रफुल्लित होने लगता है कि अब गुल्लक भर रहा है। ठीक वैसा ही सरकार के साथ भी है, जैसे-जैसे उसकी आलचनाएं कम होने लगती है सरकार खुश होने लगती है कि अब उसकी उपलब्धिय़ां बढ़ रही है। लेकिन गुल्लक तो गुल्लक है, चाहे वो सिक्कों का हो या सरकार की उपलब्धियों का। एक ना एक दिन तो इसे फुटना ही होता है।

मंगलवार को जब राजधानी लखनऊ में बीजेपी के तमाम नेता और कार्यकर्ता सूबे में योगी राज के शतक पूरा करने का जश्न मना रहे थें। तब नवाबों के शहर से करीब 567 किमी दूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक  पांच साल की मासूम आई.जी के पास अपनी गुल्लक लिए रिश्वत देने पहंची थी। उधर लोग सरकार की एक-एक उपलब्धियां गिना रहें थें, इधर ये मासूम अपनी गुल्लक तोड़कर एक-एक सिक्का जोड़ रही थी। ताकि ये रुपये आईजी को रिश्वत के तौर पर दे सके।

मंगलवार की ये दोनों तस्वीरें खामोश रहकर भी अपने आप में बहुत कुछ कह जाती हैं। एक तरफ ढ़िंढ़ोरा पीट-पीटकर प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने का वादा करने वाली योगी सरकार, तो दूसरी ओर एक पांच साल के मासूम के दिमाग में उभरी प्रशासन की भ्रष्ट तस्वीर। सरकार भले ही प्रदेश को भ्रष्टाचार मुक्त करने में उपलब्धी हांसिल करले, लेकिन सरकार की ये उपलब्धि भी शायद उस मासूम के दिल-ओ-दिमाग में खिंची उस भ्रष्ट तस्वीर को नहीं मिटा सकती। खुद को अगर उस मासूम की जगह रखकर सोचें, तो शायद हम भी यही सोचेंगे कि न्याय के लिए रिश्वत जरुरी होता है”……

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