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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का आज पहले चरण का चुनाव रहा। सभी विधानसभा सीटों पर लोगों ने जोश और उत्साह के साथ मतदान किया। लेकिन मतदान के शोरशराबे के बीच कुछ पोलिंग बूथों पर खामोशी छाई रही। यहां लोग मतदान करने नहीं पहुंचे।
ऐसा नहीं है कि ये लोग मतदान से पीछे भाग रहे हैं। और ऐसा भी नहीं है कि उन्हें ये नहीं पता कि मतदान उनका अधिकार है। बस प्रशासन की उदासीनता और सियासी रहनुमाओं की नज़रंदाजगी ने उन लोगों को चुनाव बहिष्कार करने पर मजबूर कर दिया। अब चाहे वो आगरा के दुवारी गांव के लोग हों या शामली के ताहरपुर गांव की जनता। इसके अलावा भी कई ऐसे गांव हैं जहां की जनता ने चुनाव बहिष्कार का फैसला लिया।
चुनाव बहिष्कार करने वाले अमूमन हर गांव की समस्या भी एक जैसी ही है। और इनकी मांग भी एक जैसी है। ये सभी गांव सियासी रहनुमाओं से लेकर प्रशासन तक को अपने गांव के बदहाली की दासतां सुनाते रहे हैं। पर शायद इनकी आवाज़ इतनी तेज़ नहीं थी कि वो उनके कानों तक पहुंच सके। थक हार कर इन गांव वालों ने मतदान की खामोशी को अपनी आवाज़ बना ली।
यूं तो हर चुनावी मौसम में नेताओं की गाड़ियां हर गली-मुहल्ले की ओर अपना रुख करती हैं। शायद ही ऐसा कोई गांव हो जहां की धूल इनके गाड़ी के पहियों पर न लगी हो। पगडंड़ियों का ऐसा कोई गड्ढा भी नहीं होगा जिसमें इनकी गाड़ी उछल कूद ना करती हो। पर शायद नेताओं के गाड़ी के अंदर से हर टूटी फूटी चीज बेहद खूबसूरत नजर आती है। या फिर गाड़ी का शीशी कुछ ऐसा होगा,जिसके उस पार हर चीज हसीन दिखाई देती हो। कारण चाहे जो भी हर चुनाव में ये गाड़ियां आती हैं, कुछ देर रुकती हैं कहीं चाय पानी होता है, किसी झोपड़ी में भोजन पानी तो किसी के साथ बैठ सुनाई जाती है विकास की नई कहानी। लेकिन चुनाव के बाद विकास की वो हर कहानी उस चुनावी शोर में कहीं गुम हो जाता है। और रह जाती है वही टूटी फूटी और बदहाल सड़को वाली गांव की उजड़ी कहानी………
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