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ताकि हर शाम आपका बच्चा यूं ही मुस्कुराता हुआ घर वापस आए…

मेरी बात
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ertaerta

रोज की तरह आज सुबह भी ऑफिस आया केबिन में घुसा टीवी ऑन किया, उसके बाद लाइट्स और फिर अपना सिस्टम। न्यूज चैनल लगाया तो एटा में स्कूल बस एक्सिडेंट की खबर चल रही थी। कई मासूमों ने अपना जीवन खो दिया था, शायद आज सूरज की ये किरणें उन्हें लेने आई थी। आज पूरा दिन ये एक घटना दिमाग में कौंधती रही। हर बार ये सवाल भी मन में उठता रहा कि आखिर इन तमाम मासूम मौतों का जिम्मेदार कौन है?  इसमें लापरवाही किसकी है?  स्कूल प्रशासन, बस ड्राइवर या फिर तथाकथित कोहरे की ? बात अगर लोगों की करें तो कोई इसे स्कूल प्रशासन की गलती मान रहा है, किसी को ड्राइवर की गलती नजर आ रही है, तो किसी के लिए उपर वाला यानी कोहरा वजह है।

क्षेत्र के एसडीएम साहब का कहना है कि प्रदेश में ठंढ़ के कारण 20 जनवरी  तक स्कूल बंद करने के निर्देश दिए गए थें. फिर भी ये स्कूल चल रहा था। इस लिए स्कूल प्रशासन भी कुछ हद तक जिम्मेदार है। एक बात यह भी समाने आ रही है कि बस की स्पीड भी तेज थी। यानी इस हिसाब से गलती ड्राईवर की भी थी। खैर गलती चाहे किसी की भी रही हो, लेकिन इस एक गलती ने किसी के घर का खिलौना छीन लिया, तो किसी का एक मात्र घर का चिराग भी हमेशा के लिए बुझ गया। और अपने पीछे तमाम सवाल छोड़ गया।

ये ऐसी घटना है जो इंसान को अंदर से झकझोर कर रख देती है।  किसी मां की गोद सूनी हो गई। बेटे को लाड़ करने का उस बाप का सपना टूट गया। दादा-दादी के उन कहानियों को भी अब उन मासूमों का इंतजार हमेशा के लिए रह जाएगा। वैसे देखा जाए तो देश में स्कूल बसों के लिए कुछ दिशा-निर्देश दिए गए हैं। जिसका पालन करना हर स्कूल के लिए जरूरी हो जाता है। लेकिन इस मामले में ज्यादातर स्कूल अनदेखी कर जाते हैं। स्कूल के साथ-साथ परिजन भी इस मामले में लापरवाही बरतते हैं, उनका ध्यान भी तब तक इस ओर नहीं जाता है जबतक कि कोई अनहोनी ना हो जाए। और प्रशासन को तो शायद इस बात का इंतजार रहता है ।

ऐसा नहीं है कि केवल यूपी में ही स्कूल बसों में लापरवाही बरती जाती है। देश के अन्य हिस्सों में भी बस या फिर टैक्सी में बच्चों को भूसे की तरह ठूस कर स्कूल पहुंचाया जाता है। अब वो बात अलग है कि पूरी फिस देने के बाद भी बच्चों को तमाम मुश्किले सहते हुए स्कूल जाना पड़ता है और इस ओर किसी का ध्यान भी नहीं जाता।  बच्चे अगर स्कूल में कंप्लेन करें तो उन्हें पनिश्मेंट भी मिल जाती है। घर में शिकायत करने पर कई बार बच्चों का बहाना समझ लिया जाता है। इसके अलावा बच्चे किसी से कुछ कहते नहीं। बस में ऐसे जाने की आदत बनाना बच्चों की मजबूरी हो जाती है।

यहां एक बात और कहना चाहेंगे आप से जिस तरह आप सब्जी खरीदने से पहले तमाम जांच पड़ताल करती हैं। वैसी ही जांच पड़ताल बच्चों का स्कूल में दाखिला दिलाते हुए क्यों नहीं करती। इस मामले में तो आप बस स्कूल में पढ़ाई, टीचर आदी का ही ध्यान रखती है। लेकिन जिसमें बैठकर आपका बच्चा स्कूल जाएगा क्या आपने कभी इस बारे में स्कूल से पूछा है। क्या आपने ये जानने की कोशिश की है कि बस के ड्राइवर की आंखे कितनी सक्षम है? कंडक्टर कौन है वह कितना सक्षम है, बस में फर्सट एड की क्या कुछ सुविधाएं मौजूद है? नहीं ना….हम में से ज्यादातर लोगों का इस ओर ध्यान नहीं जाता। ज्यादातर क्या लगभग कोई भी इस बात पर गौर नहीं करता। लेकिन स्कूल से ज्यादा जरूरी है, स्कूल ले जाने वालों के बारे में जानकारी रखना। ताकी आपका बच्चा सकुशल स्कूल जा सके और शाम को आपके आंखों का तारा रोज की तरह हंसता मुस्कुराता घर आकर आपसे लिपट सके।….

हो सके तो इस बारे में सोचें और कहीं भी एडमिशन दिलाने से पहले स्कूल बस की जांच पड़ताल और ड्राइवर आदि की पूरी जानकारी रखें। ताकि हर शाम आपका बच्चा यूं ही घर आता रहे।

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