मेरी बात
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विद्रोह का ये बिगुल बजाया किसने,
तुझे इंसान से यूं जानवर बनाया किसने।।
कल तलक तो था तू मेरे सुख-दुख का साथी,
आज तुझको यूं भड़काया किसने।।
जो उठते थें हाथ कुदाल चलाने को तेरे,
उन हाथों में मशाल थम्हाया किसने।।
तिनका-तिनका जोड़कर बनाया था आशियाना जिसे,
उस आशियाने को ऐसे क्यों जलाया तूने।।
कुसूरवार किसे ठहराऊं इस अक्ष्मय अपराध का,
इसमे ना दोष तेरा है ना कुसूर मेरा है।।
देख धधक रहा है आशियाना मेरा,
मेरे आशियाने को शोला बनाया तूने।।
जहां दौड़ते थें लोग एक चिंगारी बुझाने,
वहां शोला बन गया मेरा घर न बुझाया किसी ने।।
विद्रोह का ये बिगुल बजाया किसने,
तुझे इंसान से यू जानवर बनाया किसने……
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