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हर साल 22 मार्च को विश्व जल दिवस पर अधिकारी-नेता शपथ लेते हैं कि जल की बर्बादी रोकेंगे। जल सहेजेंगे। जागरूकता अभियान चलाएंगे। नेता के पीछे खड़े पचास-साठ लोग भी सुर में सुर मिलाते हैं। नेताजी कहते हैं कि जीवन के लिए जल जरूरी है और जल बचाने के लिए संरक्षण। इसके लिए लच्छेदार भाषण, बदले में तालियों की गडग़ड़ाहट। थोड़ी देर बाद यही नेता एसी गाड़ी में बैठ आगे बढ़ते हैं-बिना टोंटी का नल से पानी बेकार बहते देखते हैं। पिछले साल भी ऐसा ही था-नेताजी की नजर तब भी गई थी। मगर, क्या उन्होंने अपनी गाड़ी रोकी? उन्होंने नल में टोंटी लगाने का आदेश किसी अधिकारी को दिया? या फिर जिला प्रशासन ने नगर निगम से सवाल दागा, आदेश दिया कि बिना टोंटी वाले सारे नलों को ठीक किया जाए? नहीं, भला वे ऐसा क्यों करेंगे। इस साल का तो भाषण खत्म हो गया। अब तो अगले साल यह तिथि आएगी…तब देखा जाएगा। तो इस मानसिकता से कैसे रुकेगी जल की बर्बादी? सोच बदलनी होगी। प्राथमिक स्तर पर घर से ही पानी की बर्बादी रोकनी होगी। मगर, क्या हम ऐसा कर रहे हैं? यह सवाल खुद से जरूरी है? क्योंकि, अपवाद को छोड़ कोई ऐसा नहीं कर रहा है। जल की बर्बादी रोकने का बीड़ा तो हर व्यक्ति को लेना ही होगा। पानी की कीमत को समझना ही होगा। दुनिया के जाने-माने विद्वान आशंका जता रहे हैं कि तीसरा विश्वयुद्ध जल के लिए हो सकता है। दुनिया के कई इलाके में इंसान जल संकट झेल रहे हैं। लोग बीस-बीस किलोमीटर का सफर तय कर पीने के पानी की व्यवस्था कर रहे हैं। नदियां सूख रहीं हैं। कुएं भर दिए गए। तालाब पाटकर मकान बना दिए गए। शहर के निचले इलाके में आबादी बस चुकी है। धड़ाधड़ पेड़ काटे जा रहे हैं, ऐसे में पानी का संरक्षण कैसे होगा? पानी नहीं बचेगा तो जीवन कैसे रचेगा। हम आगामी पीढ़ी को क्या देंगे-सूखी धरती? जल संरक्षण मामले में इंग्लैंड भारत से कहीं आगे है और ऊंचा संदेश दे रहा है। इंग्लैंड के एक इलाके में नल का उपयोग कर किसी ने खुला छोड़ दिया। इसी बीच एक बड़े अधिकारी की गाड़ी गुजरी और नजर उस पर पड़ी। अधिकारी ने गाड़ी रुकवाई, नल बंद किया, तदोपरांत गंतव्य की ओर रवाना हुए। क्या भारत में ऐसा होता है? क्या भारत में ऐसा नहीं हो सकता? क्या हम ऐसा नहीं कर सकते? थोड़ा चिंतन से सवाल का जवाब हां में मिलेगा। यदि हम ऐसा करते हैं तो जल संरक्षण की दिशा में एक कदम तो जरूर आगे बढ़ेंगे। जल संकट दरवाजे पर दस्तक दे रहा है। पानी को संरक्षित करने के लिए सरकार की ओर जागरूकता अभियान चलाना होगा। नदियों की गहराई बढ़ानी होगी। कूड़े से पाट दिए गए तालाबों को जीवित करना होगा। हर घर में दो-तीन ऐसे स्पॉट बनाने होंगे, जहां से घर का कुछ पानी धरती में प्रवेश करे। क्रंक्रीट घर में एक बूंद भी पानी मिट्टी में प्रवेश नहीं करता। हर साल पानी का लेयर घट रहा है। पानी बिना जीवन संकट में पड़ जाएगा। पानी बचाने की कोशिश तो सरकार की प्राथमिकता सूची में होनी ही चाहिए। है भी, लेकिन संकल्प का अभाव दिखता है। सख्त मॉनीटङ्क्षरग न होना भी बड़ा संकट है और इससे उबरना ही होगा।
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