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यह अंधविश्वास है या फिर आस्था…!

जरा हट के
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बिहार के दरभंगा जिले में एक युवती ने देवी माता को अपनी बायीं आंख अर्पित करने का प्रयास किया। मौके पर कुछ लोगों ने उसे ऐसा करते देख लिया और जबरन रोक दिया, हालांकि इससे पहले वह आंख का चौथाई हिस्सा अंगुली से कुरेदकर निकाल चुकी थी। खून की धार भी बह रही थी, लेकिन उसके चेहरे पर पीड़ा का कोई भाव नहीं था। लोगों ने जब उसे अस्पताल ले जाने प्रयास किया तो उसने असहमति जताई। उसे जबरन अस्पताल ले जाना पड़ा, भर्ती कराया गया और इलाज शुरू हुआ। उसकी आंख की रोशनी लौटेगी या नहीं यह कहना मुश्किल है। यह पूछने पर कि उसने ऐसा क्यों किया? बताया कि मां भगवती सपने में आई थीं और एक आंख चढ़ाने के लिए कहा। इसीलिए आंख चढ़ाने का प्रयास किया। पड़ताल के दौरान यह बात सामने आई कि युवती शिक्षा मामले में कमजोर थी और समझ मामले में भी औसत से कम। अंधविश्वास कूट-कूट भरी थी। परिजन भी युवती की गतिविधि पर नजर नहीं रख पाए और वह अंधविश्वास की जद में फंसती चली गई। गांवों में अंधविश्वास से जुड़े किस्से अक्सर सुनने को मिलते हैं। हर माह एक ऐसी घटना सुनाई देती है, जो मानवता को झकझोरती है। सोचने को विवश करती है। कभी देवी को खुश करने के लिए बच्चे की बलि तो कभी अंगुली काटकर चढ़ाने जैसा वाकया सामने आता है। ऐसा करनेवाला अक्सर कम पढ़ा-लिखा होता है। उसे समाज में हो रहे बदलाव की जानकारी नहीं होती। वह हर समय अंधविश्वास में डूबा रहता है। जीवन की हर कठिनाई और सफलता को ईश्वर से जोड़ कर देखता है। उसके सामने कर्म कोई मायने नहीं रखता। अशिक्षा समाज के लिए कोढ़ के समान है। इसलिए शिक्षा सबके लिए आवश्यक है। देश-दुनिया के वैज्ञानिक विभिन्न ग्रहों पर जीवन तलाश रहे हैं और अंधविश्वास में डूबे लोग इससे कोसों दूर हैं। उनके सोचने का दायरा सिमटा हुआ है। वे अपनी सिमटी परिधि से आगे निकलना ही नहीं चाहते हैं। साधु के वेश में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अंधविश्वास को बढ़ावा देकर समाज को पीछे की ओर धकेलने का काम करते हैं। उन्हें विकसित समाज से कोई मतलब नहीं, उन्हें तो बस अपने लिए रोटी सेंकनी है। आश्चर्य की बात है कि ऐसे लोगों के चंगुल में कुछ भोले-भाले लोग फंस जाते हैं। ईश्वर की पूजा तो हर कोई करता है। आस्था भी रखनी चाहिए, मगर अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए। शासन-प्रशासन को चाहिए कि अंधविश्वास फैलाने वाले लोगों से सख्ती से निपटे।
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