- 59 Posts
- 616 Comments
सरकार के फैसले के खिलाफ अक्सर विपक्षी पार्टियां एकजुट हो जाती हैं। बंद का एलान भी होता है और शहर बंद करा भी दिया जाता है। तोडफ़ोड़ की घटना भी होती है। मगर, कोर्ट के फैसले के खिलाफ जाने की हिम्मत कोई नहीं करता। यहां तक कि राजनीतिक दल भी बयान देने से कतराते हैं। मगर, दो अप्रैल, 2018 को इतिहास के पन्नों में इसलिए दर्ज किया जाना चाहिए कि एससी-एसटी एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर सुप्रीम कोर्ट के रोक के सही फैसले के खिलाफ देशभर में हिंसा फैलाई गई। भीड़ में शामिल कई चेहरे इस कदर निर्दयी हो गए थे कि उन्होंने बच्चे, बूढ़े और महिलाओं पर भी कहर बरपाया। एक मासूम अस्पताल नहीं पहुंच सका और उसकी मौत हो गई। सुबह से शाम तक 11 जानें चली गईं। भीड़ में सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ कई लोग बोलने से बाज नहीं आए। किसी ने जगह-जगह अफवाह फैला दी कि सुप्रीम कोर्ट अब आरक्षण खत्म कर देगा। फिर क्या कौआ कान ले गया… और सड़क पर उतर आए हजारों वैसे लोग, जिन्हें कानून के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और न ही उन्होंने जानने की कोशिश की। भीड़ में अपनी रोटी सेंकने वाले चंद लोग ही थे। ये वे लोग थे जो गरीबों को थोड़ा फायदा पहुंचाकर अपनी जेब मोटी करते हैं। इनके एक इशारे पर कुछ भी हो सकता है। इसी का नाम है पॉलिटिक्स, जिसमें सबकुछ जायज है। चाहें कितने लोग हिंसा की भेंट क्यों न चढ़ जाएं, इनके दामन पर दाग नहीं लगता। सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कोई फैसला नहीं सुनाया है, जिससे दलितों के अधिकार में कटौती हो। बात समझने की थी, सोचने की थी कि क्या किसी निर्दोष को यूं ही जेल भेज दिया जाए? हिंसा भड़काने वाले भी यह समझ रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सबके हित में है, यहां तक कि दलितों के हित में भी। क्योंकि, कई सफेदपोश जो दलितों का इस्तेमाल करते हैं। अब वे अपना उल्लू सीधा नहीं कर सकेंगे। ऐसे में वोट बैंक को मजबूत करने और दलितों का मसीहा बनकर उभरने का यह मौका भला कुछ लोग कैसे छोड़ देते? बहती गंगा में हाथ धोना ही उन्होंने बेहतर समझा। हिंसा के दौरान करोड़ों रुपये की संपत्ति फूंक दी गई। यह संपत्ति किसकी है? क्या यह संपत्ति सरकार की है? यह संपत्ति तो जनता की ही है। देश की है। फिर संपत्ति की क्षति कर कुछ लोग क्या संदेश देना चाहते हैं? सौ साल पहले अमेरिका, जापान और चीन कहां थे और आज विकास मामले में कहां हैं? भारत कहां था और आज कहां है? देश का विकास चाहिए तो जात-पात से ऊपर उठना होगा। सबका लक्ष्य एक ही होना चाहिए-देश का विकास। सबके लिए समान शिक्षा। नेता चाहें किसी दल का हो, उद्देश्य तो एक ही होना चाहिए। हिंसा में जो लोग स्वर्ग सिधार गए, वे वापस नहीं आ सकते। जो संपत्ति नष्ट हो गई, वो भी वापस नहीं आ सकती। लेकिन हिंसा में शिरकत करने वालों को विचार तो करना ही चाहिए कि उन्होंने जो किया-क्या वो सही है…।
—————–
Read Comments