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घर में मिठास, राजनीति में कड़वाहट

जरा हट के
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कृषि मंत्री शरद पवार जैसे परिपक्व नेता का यह बयान कि महंगाई के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जिम्मेवार हैं। हालांकि पवार फौरन अपनी बात से उलट गए, बोले प्रधानमंत्री पर निशाना नहीं साधा। गए दिनों उन्होंने चीनी की बढ़ती दर पर कहा था कि वे ज्योतिषी नहीं हैं, जो यह बता सकें कि दाम कब घटेंगे। जाहिर है, राजनीति में कड़वाहट घोलकर भी वे घर की मिठास को बरकरार रखना चाहते हैं। देशवासी जानते हैं कि पवार के परिवार में दर्जनभर से अधिक चीनी मिलें हैं। उनके बयान पर राजनीति में उबाल आया तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को हस्तक्षेप करना पड़ा। मनमोहन ने कहा कि महंगाई कम करने के लिए केन्द्र सरकार हर संभव कदम उठाएगी। छीछालेदर होते देख शरद ने एक सप्ताह चुप्पी साध ली, पुन: बीस जनवरी को यह बयान दे डाला कि दूध के दाम में बढ़ोतरी होगी। उनके इस बयान से हर वर्ग के लोग उबल पड़े। जगह-जगह लोगों ने प्रदर्शन कर विरोध भी जताया। विपक्ष ने तो बयानबाजी और निंदा की पोटली खोल दी। अभी ये विवादों से निकले भी नहीं थे कि चौबीस जनवरी को पुणे में यह कह दिया कि महंगाई के लिए सिर्फ वही जिम्मेवार नहीं बल्कि प्रधानमंत्री भी हैं। बीजेपी ने इस बयान को फुटबॉल की तरह ‘कैच’ कर लिया, बवाल होता देख पवार पलट गए और कहा कि उनका आशय यह नहीं था। यह भी कहा कि कृषि उत्पादों के दाम उनके मंत्रालय को भेजी गई विशेषज्ञ कमिटी की सिफारिशों पर कैबिनेट के साझा फैसले से होते हैं। उनके बयान पर समाजसेवी व अर्थशास्त्री रामशरण अग्रवाल कहते हैं कि कृषि मंत्री का यह बयान न तो सामूहिक दायित्व के अनुरूप है, न ही राजनीति नैतिकता से ही मेल खाता है। उन्होंने कहा कि शायद पवार इस सच को आत्मसात नहीं कर पा रहे हैं कि वर्तमान प्रधानमंत्री से राजनीति में वे वरिष्ठ हैं। भूतपूर्व सशक्त मंत्री अर्जुन सिंह के मन में भी प्रधानमंत्री से वरिष्ठ होने का विचार आया था। आज राजनीति के उस घाटी में उनका बसेरा है, जिसे अब लोग जानते नहीं हैं। आंकड़े गवाह हैं कि किसी भी नेता के परिजन जिस चीज का व्यवसाय करते हैं। संबंधित विधायक या सांसद उसी विभाग के मंत्री बनना चाहते हैं। इससे चूकने पर कोई मालदार विभाग पर ही वे सौदा करते हैं। वजह साफ है कि उनके सगे-संबंधियों को इसका लाभ मिले ? स्व. इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थीं और राजीव गांधी ने सोनिया गांधी से शादी कर ली थी। तब, इंदिरा ने नागरिकता के कानून में संशोधन कर दिया ताकि सोनिया को भारत का नागरिक बनने में कोई परेशानी न हो। पिछले सप्ताह ही रेल मंत्री ममता बनर्जी ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के ‘आजीवन फ्री रेलवे पास’ को रद कर दिया। लालू ने रेल मंत्री से हटते-हटते खुद के लिए कई सुविधाएं सुरक्षित करवा ली थी। यह अलग बात है कि ममता एक-एक कर सभी सुविधाओं को रद कर रही हैं। इधर, चीनी के दाम बढऩे से गरीब पहले ही चाय से दूर हो गए हैं। पवार ने चीनी की बढ़ती कीमतों का ठीकरा पिछले दिनों उत्तर प्रदेश सरकार के सिर भी फोड़ा था। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार वही नेता हैं, जिन्होंने 1999 में सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री न बनाने के मुद्दे पर कांग्रेस से अलग होकर यह पार्टी बनाई थी। शरद केंद्र सरकार में कृषि मंत्री के अलावा उपभोक्ता मामलों और खाद्य और लोक वितरण विभाग के भी मंत्री हैं। महाराष्ट्र में इन्हें एक बड़े किसान के रूप भी जाना जाता है। चार बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एवं छह बार लोकसभा के लिए चुने जा चुके और प्रधानमंत्री के प्रबल दावेदार भी रह चुके शरद पवार की गिनती देश के बड़े नेता के रूप में होती है। सरकार के बनने-बिगडने में भी इनकी महती भूमिका होती है। ऐसे में इस तरह के बयान देकर वे फिर विवादों में फंस गए हैं। गए सप्ताह ही शरद ने कहा था कि उत्तरी राज्यों में उत्पादन में कमी से दूध की कमी हो गई है। यह कमी करीब अठारह लाख टन है। वहीं, सूत्रों का दावा है कि सरकारी नीतियों के चलते दूध की कमी हुई है। इससे पहले ही निजी दूधियों ने दूध की कीमत 32 रुपए लीटर कर दी थी, जबकि मदर डेयरी व अमूल के दूध की कीमत 28 रुपए लीटर है। अक्टूबर में दिल्ली समेत कई राज्यों में दूध के दाम दो रुपए लीटर बढ़े थे। बिहार की गिनती भी चीनी के मुख्य उत्पादक राज्य में होती थी। केन्द्र यदि बिहार में दस चीनी मिलों सहित भारत में बंद अन्य चीनी मिलों को खोलने की इजाजत समय पर दे दिया होता तो आज की तस्वीर इतनी भयावह नहीं होती। बिहार की चीनी मिलों को खोलने की इजाजत देने में केन्द्र सरकार को साढ़े तीन वर्ष लग गए। अक्टूबर 2009 में केन्द्र ने अनुमति दी, इसके पश्चात बिहार में बंद चीनी मिल खोलने की सुगबुगाहट शुरू हुई। बिहार के पूर्णिया की बंद चीनी मिल बनमंकी एशिया की सबसे बड़ी मिल है, वर्षों से बंद पड़ी है। इन समस्याओं से अधिक शरद पवार को क्रिकेट के व्यवसायीकरण में अधिक रुचि रही है। यही कारण है कि महंगाई को वे हल्के तौर पर ले हल्की बयानबाजी कर फंसते जा रहे हैं।

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