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भगवान, ये अमीर व वीआईपी हैं…!

जरा हट के
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बचपन से यही सिखाया-पढ़ाया जाता है कि भगवान की नजर में सभी समान हैं। न कोई अमीर और न ही कोई गरीब। धार्मिक किताबें भी यही कहती हैं। परंतु कुछ पुजारियों ने इसे उलट दिया है। ये पुजारी अमीरों को बिना इंतजार कराए ही भगवान का दर्शन करवा देते हैं, जबकि गरीबों को इसके लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है। किसी भी मंदिर में जैसे ही कोई अमीर या वीआईपी भगवान दर्शन के लिए पहुंचते हैं। लंबी कतार में खड़े गरीब व सामान्य भक्तों को रोक दिया जाता है। वीआईपी या अमीर महोदय, जबतक भगवान का दर्शन ठीक से नहीं कर लेते और भरपूर आशीर्वाद नहीं ले लेते, तबतक कोई गरीब प्रवेश नहीं कर सकता। बिहार में राबड़ी देवी जब मुख्यमंत्री थीं तो वे कार्तिक छठ करती थीं। जिस गंगा घाट पर ये अर्घ्य देने जाती थीं। उस घाट पर कोई आम आदमी अर्घ्य नहीं दे सकता था। घाट पर सैकड़ों की संख्या में सुरक्षाकर्मी पहले से ही तैनात रहते थे। यहां तक कि वे जिस मार्ग से जाती थीं। उस मार्ग पर भी आवागमन रोक दिया जाता था। इससे जनता को कितनी परेशानी होती थी। यह तो जनता ही समझती थी। किसी राज्य के मुख्यमंत्री यदि कहीं देवी-देवता के दर्शन के लिए जाते हैं तो उस वक्त आम जनता के प्रवेश पर रोक लगा दी जाती है। यानी किसी बड़े मंदिर में यदि देवी या देवता का दर्शन बिना लाइन में लगे करना हो तो इसके लिए अमीर या वीआईपी होना जरूरी है, वर्ना कीजिए घंटों लाइन में इंतजार? अभिषेक बच्चन की शादी के पहले अमिताभ बच्चन कई बार वाराणसी गए थे। इस दौरान वे कई ऐसे मंदिरों में गए थे, जहां बिना पंक्ति में आए देवी दर्शन कठिन है। लेकिन उन्हें कहीं कोई परेशानी नहीं हुई, वजह साफ है कि वे एक बड़ी हस्ती हैं। इसकी एक बड़ी वजह चढ़ावे की राशि का अधिक होना भी है। बड़ी हस्तियां जब देवी-देवता के दर्शन के लिए जाती हैं तो वे लाखों में चढ़ावा चढ़ाती हैं। ऐसे में पुजारी और मंदिर के भाग्य खुल जाते हैं। कई पुजारी तो ललचायी नजरों से ऐसे दानकर्ता का इंतजार करते हैं? यानी भक्त अमीर या वीआईपी हो और दान की राशि अधिक हो, तो गरीब भक्तों की ओर पुजारी क्यों देखे? कई मंदिरों के पुजारियों ने गरीब भक्तों को यहां तक कह दिया है कि महंगाई बढ़ गई है, सो चढ़ावे की राशि बढाइए। हर जगह यह देखने को मिलती है कि कम चढ़ावे पर पुजारी नाराज हो जाते हैं। वे बेमन ही पूजा करवाने लगते हैं। वहीं दान की राशि अधिक होने पर जमकर आशीर्वाद देते हैं, यह भी कहने से नहीं चूकते कि यहां से कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता।

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