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विश्व के अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मंदी के बादल लगभग छंट चुके हैं। भारत के वित्त मंत्री भी कह चुके हैं कि फिर से रोजगार के नए अवसर खुलने लगे हैं। परंतु भारत के मध्यम निजी कंपनियों और कुछ उच्च कंपनियों में अभी मंदी का दौर खत्म नहीं हुआ है? मंदी के बहाने अबतक सैकड़ों कंपनियां हजारों लोगों को बाहर का रास्ता दिखा चुकी हैं। उनलोगों पर गाज अधिक गिरी, जिनके वेतन अधिक थे। कम वेतन वाले तो कुछ सुरक्षित बच गए परंतु अधिक वेतन वाले बेकाम हो गए। मंदी के बहाने फायदे में चल रहीं कंपनियों ने भी छंटनी के नाम पर कर्मचारियों का जमकर शोषण किया। काम के घंटे बढ़ा दिए जबकि तनख्वाह में फूटी कौड़ी भी बढ़ोतरी नहीं की। गोपनीय आंकड़ों पर गौर करें तो सैकड़ों कंपनियों ने डेढ़ वर्षों से मंदी के नाम पर अपने किसी कर्मचारी को ‘इन्क्रीमेंट’ तक नहीं दिया। यदि किसी कर्मचारी ने हिम्मत करके अपनी बात रखने की कोशिश की तो नौकरी से निकाल देने की धमकी मिली। ऐसे में ये कर्मचारी किससे शिकायत करें, कहां जाएं, अंधी सरकार तो पहले से ही कंबल ओढ़कर सोई हुई है? महंगाई घरों में इस कदर समा चुकी है कि थाली में दाल दिखती है तो सब्जी नहीं। भारत की एक बड़ी कंपनी की शाखा बिहार में भी है। यहां के कई ऐसे कर्मचारियों से जबरन इस्तीफा ले लिया गया, जो बीस साल से अधिक समय से उस कंपनी में बने हुए थे। इनका कार्य भी बेहतर माना जाता था। कंपनी के बॉस ने कहा कि या तो इस्तीफा दें, वर्ना कोई इल्जाम लगाकर निकाल दिया जाएगा। मजबूर होकर कर्मचारियों को इस्तीफा देना पड़ा। एक दशक पहले तक अधिकतर बड़ी कंपनियों में नौकरी ‘पर्मानेंट’ होती थी। ऐसे में किसी कर्मचारी को हटाना आसान नहीं था। अब सभी कंपनियों में नौकरी ‘कांट्रेक्ट’ पर दी जा रही है, जिसे कंपनी जब चाहे हटा सकती है। इसका कहीं विरोध नहीं हो रहा क्योंकि सरकार ही पक्ष में खड़ी है। इधर, हजारों कर्मचारी डर के साये में नौकरी कर रहे हैं। मंदी की दस्तक के साथ ही कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को न सिर्फ डराया बल्कि जमकर शोषण भी किया और कर रहे हैं। आसमान छूती महंगाई ने कम वेतन पाने वालों के घर से दाल की कटोरी ही गायब कर दी है। हर घर में महंगाई को लेकर तनाव है कि खर्च कैसे चले? इसका जवाब हवा में तैर रहा है। सभी की जबां पर बस एक ही सवाल कि मंदी के नाम पर और कितना शोषण? कांट्रेक्ट पर बहाली करते वक्त ही कंपनियां कर्मचारियों से लिखता लेती हैं कि यदि उनका कार्य ठीक-ठाक नहीं रहा तो उन्हें ‘कांट्रेक्ट’ की अवधि के पूर्व भी हटाया जा सकता है। ऐसे में खामोश रहना इनकी मजबूरी है?
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