सावधान! हाइजैक हो रही आपकी गोपनीयता
सावधान! हाइजैक हो रही आपकी गोपनीयता
सावधान! आपकी गोपनीयता खतरे में है, लेकिन आप चाहकर भी कुछ नहीं कर सकेंगे। मोबाइल का सिम खरीदने, आधार कार्ड बनवाने के लिए गोपनीय जानकारी शेयर करना हर किसी की मजबूरी है। इसी का फायदा कुछ डाटा ब्रोकर्स उठा रहे हैं। भारत में कई ब्रोकर्स विभिन्न माध्यम से गोपनीय डाटा एकत्रित करते हैं, पुन: ये किसी कंपनी के हाथों बेच देते हैं। बदले में मोटी रकम की वसूली करते हैं। कई बीमा कंपनियां, ऑनलाइन कंपनियां इस डाटा का उपयोग कर रही हैं। कभी-कभी आपके फोन पर अकस्मात दिल्ली-मुंबई से फोन आता है कि अमूक कंपनी से बीमा कराएं, इसके ये-ये लाभ हैं। कई बार अनजाने खत भी आते हैं, जिसमें लुभावने स्कीम की चर्चा होती है। आप चौंक जाते हैं कि आपका नाम व नंबर कैसे मिला? जानकर हैरानी होगी कि डाटा ब्रोकिंग का यह ‘खेलÓ वैश्विक स्तर पर 200 अरब डालर का है, हालांकि भारत में यह प्रारंभिक चरण में ही है। मगर, इसकी गति तेज है। केंद्र व राज्य सरकारों की नजर अब तक डाटा ब्रोकरों पर नहीं गई है। उनके व्यवसाय से पुलिस-प्रशासन भी अनजान हैं। कैशलेस व्यवस्था के बाद इंटरनेट यूजर की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। लोग ऑनलाइन खरीदारी कर रहे हैं। टैक्सी बुकिंग व अन्य कामों के लिए भी विभिन्न तरह के एप का उपयोग किया जा रहा है। डाटा ब्रोकर्स इसका भी लाभ उठा रहे हैं। भारत सरकार ने अब तक ऐसे तंत्र विकसित नहीं किए, जो इस काम में संलिप्त लोगों पर लगाम कस सके। साइबर अपराध ने रफ्तार पकड़ ली है, इस तुलना में रोकने की कवायद सिफर है। पुलिस के पास आधुनिक यंत्रों का घोर अभाव है। कुल मिलाकर डाटा ब्रोकर्स से निपटने के लिए सरकार के पास फिलहाल कोई योजना नहीं दिख रही है। सख्ती के नाम छूट और सिर्फ छूट। ऐसे में ब्रोकरों को भय कैसे होगा? ऐसे तत्वों को रोकने के लिए सरकार को सख्त कानून बनाना ही होगा, क्योंकि डाटा से प्राप्त जानकारी के आधार पर हैकर बैंक के पासवर्ड भी हासिल कर सकते हैं। ऐसे में आम आदमी की गाढ़ी कमाई एक झटके में उनके हाथ से निकल सकती है। साइबर अपराध से निपटने के लिए अलग विभाग बनाने की जरूरत है, जो आधुनिक यंत्रों से लैस हो। इसमें पुलिस के तेज तर्रार अधिकारी व आइआइटियन हों। सरकार अब तक साइबर क्राइम व उससे जुड़ी हरकतों को हल्के में ले रही है। यही वजह है कि प्रतिदिन कई लोग इसके शिकार हो रहे हैं। 99 फीसद मामले में पुलिस को कामयाबी नहीं मिलती है। सो, सरकार को चाहिए कि समय रहते न सिर्फ चेते, बल्कि लोगों को जागरूक भी करे।
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सावधान! आपकी गोपनीयता खतरे में है, लेकिन आप चाहकर भी कुछ नहीं कर सकेंगे। मोबाइल का सिम खरीदने, आधार कार्ड बनवाने के लिए गोपनीय जानकारी शेयर करना हर किसी की मजबूरी है। इसी का फायदा कुछ डाटा ब्रोकर्स उठा रहे हैं। भारत में कई ब्रोकर्स विभिन्न माध्यम से गोपनीय डाटा एकत्रित करते हैं, पुन: ये किसी कंपनी के हाथों बेच देते हैं। बदले में मोटी रकम की वसूली करते हैं। कई बीमा कंपनियां, ऑनलाइन कंपनियां इस डाटा का उपयोग कर रही हैं। कभी-कभी आपके फोन पर अकस्मात दिल्ली-मुंबई से फोन आता है कि अमूक कंपनी से बीमा कराएं, इसके ये-ये लाभ हैं। कई बार अनजाने खत भी आते हैं, जिसमें लुभावने स्कीम की चर्चा होती है। आप चौंक जाते हैं कि आपका नाम व नंबर कैसे मिला? जानकर हैरानी होगी कि डाटा ब्रोकिंग का यह ‘खेलÓ वैश्विक स्तर पर 200 अरब डालर का है, हालांकि भारत में यह प्रारंभिक चरण में ही है। मगर, इसकी गति तेज है। केंद्र व राज्य सरकारों की नजर अब तक डाटा ब्रोकरों पर नहीं गई है। उनके व्यवसाय से पुलिस-प्रशासन भी अनजान हैं। कैशलेस व्यवस्था के बाद इंटरनेट यूजर की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। लोग ऑनलाइन खरीदारी कर रहे हैं। टैक्सी बुकिंग व अन्य कामों के लिए भी विभिन्न तरह के एप का उपयोग किया जा रहा है। डाटा ब्रोकर्स इसका भी लाभ उठा रहे हैं। भारत सरकार ने अब तक ऐसे तंत्र विकसित नहीं किए, जो इस काम में संलिप्त लोगों पर लगाम कस सके। साइबर अपराध ने रफ्तार पकड़ ली है, इस तुलना में रोकने की कवायद सिफर है। पुलिस के पास आधुनिक यंत्रों का घोर अभाव है। कुल मिलाकर डाटा ब्रोकर्स से निपटने के लिए सरकार के पास फिलहाल कोई योजना नहीं दिख रही है। सख्ती के नाम छूट और सिर्फ छूट। ऐसे में ब्रोकरों को भय कैसे होगा? ऐसे तत्वों को रोकने के लिए सरकार को सख्त कानून बनाना ही होगा, क्योंकि डाटा से प्राप्त जानकारी के आधार पर हैकर बैंक के पासवर्ड भी हासिल कर सकते हैं। ऐसे में आम आदमी की गाढ़ी कमाई एक झटके में उनके हाथ से निकल सकती है। साइबर अपराध से निपटने के लिए अलग विभाग बनाने की जरूरत है, जो आधुनिक यंत्रों से लैस हो। इसमें पुलिस के तेज तर्रार अधिकारी व आइआइटियन हों। सरकार अब तक साइबर क्राइम व उससे जुड़ी हरकतों को हल्के में ले रही है। यही वजह है कि प्रतिदिन कई लोग इसके शिकार हो रहे हैं। 99 फीसद मामले में पुलिस को कामयाबी नहीं मिलती है। सो, सरकार को चाहिए कि समय रहते न सिर्फ चेते, बल्कि लोगों को जागरूक भी करे।
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