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दलितों को न्याय दिलाने के लिए बना एससी-एसटी एक्ट लाखों लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को तहे दिल से शुक्रिया, जिसने लोगों के दर्द को समझा। यह भी समझा कि इस कानून का किस तरह धड़ल्ले से दुरुपयोग हो रहा है। तभी तो, उसने स्पष्ट कह दिया कि प्रताडऩा की शिकायत मिलते ही न तो तत्काल उसे प्राथमिकी में तब्दील किया जाएगा और न ही आरोपित की तुरंत गिरफ्तारी होगी। यह भी साफ कर दिया किअभियुक्त को जमानत दी जा सकती है। इस फैसले से निश्चित रूप से आमजन को राहत मिलेगी और वैसे लोगों को झटका, जो इस अधिकार का दुरुपयोग कर रहे थे। आंकड़ों को खंगालें तो पता चलेगा कि हजारों ऐसे लोग जेल में बंद हैं, जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया। कोर्ट ने तो पुलिस की ओर से पेश साक्ष्य के आधार पर फैसला सुना दिया। अदालत की आंख नहीं होती, उसे तो जो दिखाया/समझाया जाता है, उसी के आधार पर फैसला सुनाती है। इसी का फायदा तो दलित उत्पीडऩ के नाम पर केस करनेवाले उठाते रहे हैं। यह अक्षरश: सही है कि इस कानून का बेजा दुरुपयोग होने लगा था। इस बात को समाज के हर वर्ग के लोग महसूस कर रहे थे। तहकीकात के क्रम में पुलिस अफसरों को दिख जाता था कि किस तरह कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है। वे कई बार तो केस की तह तकपहुंच जाते थे और निर्दोष को बचा लेते थे, लेकिन कई केस में वकीलों की जिरह के आगे वे टिक नहीं पाते। बड़ी संख्या में नेता भी इस व्यूह में फंस चुके हैं। अदालतों का चक्कर आज भी लगा रहे हैं। पार्टी के आलाकमान को भी जानकारी है कि केस झूठा है, लेकिन कोई उपाय नहीं। क्योंकि, यह ऐसा विषय है, जो सीधे वोट बैंक से जुड़ा है। सो, दर्द से कराहने के बाद भी कोई नेता आवाज नहीं उठा सकता। विरोध नहीं कर सकता। कानून के दुरुपयोग की बात नहीं कह सकता। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सराहनीय और स्वागत योग्य है। हालांकि किसी नेता ने इसपर टिप्पणी नहीं की, क्योंकि दलितों का भय उनके रोम-रोम में है। एक सच यह भी है कि दलित अब भी सताए जा रहे हैं, लेकिन ऐसे पीडि़त इतने गरीब हैं कि वे पुलिस या फिर कोर्ट में अपनी बात नहीं रखते, वे तो बस जुल्म सहना जानते हैं-करना नहीं। देश में कई ऐसे कानून हैं, जिसमें संशोधन की आवश्यकता है। ऐसे कानून का जिक्र भी नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इसके विरोध में कई एक साथ खड़े हो जाएंगे। विरोध करनेवाले भी इसकी जद में हैं, लेकिन ये वे लोग हैं, जिनके लिए हर सच्चाई से इतर वोट है। एक-एक वोट कीमती है, क्योंकि एक वोट जीत को हार में बदल देता है। इसलिए वे चुप हैं। चुप रहेंगे और तमाशा देखेंगे।
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