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हर आंख निहारे नारी देह

जरा हट के
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महिलाओं के बारे में…ऊंची-ऊंची बातें…घर में, परिवार में, सड़क पर दफ्तर में, मंच पर…। मगर, अकेले में नारी के प्रति विपरीत सोच, अर्थात हर आंख निहारती है देह। लैला-मजनूं व हीर-रांझा की प्रेम कहानियां इतिहास के पन्नों में दर्ज होकर रह गई हैं। प्रेम की परिभाषा बदल चुकी है। नारी को देवी का दर्जा सिर्फ भाषणों में ही दिया जा रहा है। यदि ऐसा न होता तो हर विज्ञापन में अद्र्धनग्न नारी न दिखती। नेताओं की पार्टी में अद्र्धनग्न युवतियों को नहीं नचाया जाता। बलात्कार की घटना में अप्रत्याशित वृद्धि नहीं होती। टेलीविजन पर चल रहे कार्यक्रम को पिता-पुत्री साथ बैठकर देखने से परहेज नहीं करते। लेकिन यह हो रहा है…। वहीं, सोलह की उम्र में पैर रखते ही छात्र-छात्राओं में दोस्ती के प्रति बेचैनी नहीं बढ़ती। चंद दिनों में ये प्रेमी-प्रेमिका भी न बनते? मगर, यह भी हो रहा है…। क्योंकि प्रेम तो कहीं है ही नहीं, प्रेम तो हवश का रूप ले चुका है। उसे तो चाहिए बस देह सुख। तभी तो, बच्ची बन रही ‘बच्ची’ की ‘मां’…। यह मामला कितना गंभीर है, सामूहिक विचार और निदान के लिए प्रयास की जरूरत है।
इस संबंध में तीस से चालीस की उम्र के पच्चीस लोगों से बात की गई। इसमें एक सज्जन को सीसीटी कैमरे ने लड़कियों को घूरते पकड़ा था। इनकी अपनी कहानी है। ये अपने विचारों में गिरावट मानने को तैयार नहीं, बल्कि सारा दोष नारी पर ही थोप रहे हैं। इनकी मानें तो तड़क-भड़क पोशाक और अंगप्रदर्शन की वजह से युवकों का ध्यान स्वत: ही नारी की ओर खींचता चला जाता है। ऐसे में नेत्र व मन का क्या कसूर? अन्य चौबीस के स्वर भी मिले-जुले थे। कमोबेश सभी ने उक्त स्वर पर हामी भरी। हालांकि सबने इस बात से इंकार किया कि उनकी नजर में ‘अश्लीलता’ है। इधर, लड़कियों के भी अपने तर्क थे। उनका मानना था कि मुंबई की लड़कियां तो एकदम छोटे कपड़े पहनती हैं। मगर, कोई घूरता नहीं है। क्योंकि, वहां की सोच व मानसिकता ऊंची है। कुछ ऐसे प्रेमी-प्रेमिकाओं से भी बातचीत की गई, जो शादी से पहले ही शारीरिक संबंध बना चुके हैं। ये सभी बीस साल से नीचे के हैं। गोपनीय तरीके से कई लड़कियां ओवर्शन भी करा चुकी हैं। इनका इरादा नौकरी के पश्चात ही शादी की है। अधिकतर की दोस्ती कोचिंग में पढऩे के दौरान हुई। कोलकाता के मनोवैज्ञानिक रामधार कोटरिया इसे पूरी तरह से गलत मानते हैं। उनका मानना है कि ऐसे युवक-युवती जिंदगी की दौड़ में पीछे रह जाते हैं, क्योंकि इनका पूरा ध्यान प्रेमालाप में ही लगा रह जाता है। ये इसके लिए मां-बाप को ही दोषी मानते हैं। वजह जो भी हो, नारी के प्रति सोच बदली है। छोटे-बड़े सभी निजी कार्यालयों में सुंदर और जींस वाली लड़कियां ही चाहिए। पढ़ाई से ज्यादा सुंदरता ही मेरिट का सर्टिफिकेट बन चुका है।

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