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माटी का दीपक

दीपावली की चकाचौंध में
माटी का वो दीपक गुम है.
अमावस की गहन रात्रि में
जैसे चाँद-सितारे गुम हैं.
खरीदारों की भीड़-भाड़ में
जरूतमंद इंसान वो गुम है.
मिठाइयों से भरे बाजार में
माँ के हाथ का स्वाद वो गुम है.
इंटरनेट और फ़ोन के युग में
सब का हाथ और साथ वो गुम है.
कपट-कूट से भरे व्यापार में
सीधी सी मुस्कान वो गुम है.
दीपावली की चकाचौंध में
माटी का वो दीपक गुम है.