AKSHAR
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मन है कि कुआँ
कभी भरता नहीं
संतोख का नीर
इसमें रुकता नहीं .
इच्छाओं की कीच से
सराबोर हो रहा है
विरक्ति का कमल
इसमें खिलता नहीं .
समय की उथल- पुथल
और बाढ़ ही है उपाए
जो इसे स्वच्छ करे
और ज्ञान का दीपक जलाए .
रौशनी में शायद
ये जान पाए
खुद की हस्ती को
पहचान पाए.
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