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बेटे की वार्षिक परीक्षाएं निकट थीं. परीक्षाओं की चिंता बेटे की अपेक्षा पिता को अधिक थी. शायद वो अपने बेटे की योग्यता से परिचित थे. इसी कारण यहाँ – वहां जान पहचान भिड़ाने में लगे थे के परीक्षा में बेटे की कुछ मदद हो जाये, मदद नक़ल में. उनके इस प्रयास को तब सफलता मिली जब उन्हें परीक्षा केंद्र के अधीक्षक के बारे में पता चला. लेकिन सुनने में ये भी मिला के अधीक्षक महोदय बड़े कठोर स्वभाव के हैं. लेकिन पिता को अपने जोड़-तोड़ पर पूरा भरोसा था. इसी जोड़-तोड़ के कारण वो अधीक्षक महोदय के निकट के परिचित तक भी पहुँच गए. संध्या के समय पिता और पुत्र दोनों उन परिचित के घर पहुंचे और परीक्षा में बेटे की मदद यानि के नक़ल करवाने के लिए केंद्र अधीक्षक से बात करने को कहा. पिता ने परिचित को ऐसा करने पर चाय-पानी की व्यवस्था करने को भी कहा. लेकिन परिचित ने बड़े ही उदास मन से कहा के आप के बेटे की परीक्षा यदि मेरे केंद्र पर होती तो कोई चिंता नहीं थी. लेकिन जिस केंद्र पर इसकी परीक्षा है वहां का अधीक्षक बड़ा ही गन्दा आदमी है. न तो नक़ल करने देता है ना ही करवाने देता है. चाय तो दूर किसी का पानी भी नहीं पिता. बड़ा कुत्ता आदमी है. पिता ने उदासी से सर हिलाया और बाहर का रुख किया. बेटे ने जीवन की पाठशाला में एक सबक सीख लिया था के ईमानदार आदमी गंदा और कुत्ता होता है.
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