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“पुरुषोत्तम राम” चौदह साल के वनवास के बाद घर लौट रहे थे…
पूरा शहर बहुत खुश था। आज उनके चहेते राम, लक्ष्मण और सीता के साथ वापस आ रहे थे। सारा शहर जग-मग सजा हुआ था। आज का दिन “दीपावली” के नाम से मनाया जाने वाला था।
शहर भर में दीये जले हुए थे ऐसा लग रहा थ जैसे आकाश से सारे तारे ज़मीन पर आ गये हों। जहाँ तहाँ सड़कों पर, घरों के छतों पर, खिड़कियों पर, दरवाज़ों पर बस दीये ही दीये…और हर घर के आगे रंगोली..बहुत ही अद्भुत दृश्य था। अभी राम बस शहर के बाहर थे…
जैसे ही वह शहर में घुसे उन्हें घरों से आवाज़ें आ रही थी…”चलो, पहले पूजा कर लें फटा-फट फिर दीवाली मनायेंगे, पुरुषोत्तम राम बस आते ही होंगे”। राम, सीता और लक्ष्मण यह सब देख और सुन बहुत प्रसन्न थे…
जैसे जैसे राम शहर में आते गये वैसे वैसे घरों में, पूजा या तो ख़त्म हो चुकी थी या शुरु हो रही थी, दीवाली मनाने के पहले सब पूजा कर लेना चाहते थे और राम बहुत उत्सुक थे कि पूजा के बाद ऐसा तो क्या होने वाला है जिसकी इन सब को इतनी जल्दी है? “मेरे आने की खुशी में दीवाली कैसे मनाने वाले हैं, मेरे शहर के लोग?” ..सोच सोच वह मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे…
अब राम शहर के ज़रा और अन्दर आ चुके थे..उन्होंने देखा कहीं कहीं ताश के पत्ते बाहर आने लगे, और कहीं कहीं ’बोतल’ खुलने लगी…धीरे धीरे सब घरों में परिवार ,दोस्त इकठ्ठा होने लगे..ताश के पत्ते बाँटे जाने लगे और ’पेग’ बनाये जाने लगे…देखते ही देखते सारा शहर ज़ोरों से शराब पीने लगा और खुल कर जुआ खेलने लगा..जैसे जैसे राम और शहर में घुसे वैसे वैसे लोग “पटाखे” जलाने लगे..और धीरे धीरे सारा शहर पटाखों की आवाज़ से गूंजने लगा…बहुत शोर…कान फट जाये उतनी आवाज़..और बारूद के बदबू वाले धुएं से साँस लेना मुश्किल होने लगा..सीता और लक्ष्मण का भी दम घुटने लगा।
अचानक एक लावारिस “रॉकेट” लक्ष्मण की धोती के बहुत करीब से ’जम्म्म’ करके गुज़रा, उनकी धोती में छेद होते होते बचा, इस बात का शुक्र तो वह मना ही रहे थे कि धोती जल नहीं गयी वरना उतार, फेंकनी पड़ जाती…अचानक सीता ने इशारा किया तो राम ने देखा कि वह रॉकेट अब एक खिड़की से किसी घर में घुस गया, और उस घर के परदे में आग लग गयी और वह आग फिर करीब रखे पटाखों पर फैली और सारे पटाखे आनन फानन जलने-फटने लगे…जो भाग सकते थे भागे, एक सज्ज्न के मुँह पर ही एक पटाख़ा ऐसा फटा कि वह वहीं बेहोश हो गये…और उस घर में धीरे धीरे आग बढने लगी…और फिर उस “फ़्लैट” से आग बाकी की बिल्डिंग में फैलने लगी..
>>>> आगे पूरा व्यंग्य यहाँ पढ़ें – http://rachanakar.org/2011/10/2011_26.html
मूल आलेख – हर्ष छाया के ब्लॉग पर यहाँ पढ़ें – http://harshchhaya.blogspot.com/2011/10/blog-post_25.html
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