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अन्ना! वापस जाओ!!

छींटें और बौछारें
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देश का अन्नाकरण हो रहा है और इधर आम-आदमी का हृदय धड़क रहा है. यदि भारत में सचमुच लोकपाल आ गया, यदि सचमुच भ्रष्टाचार मिट गया तो हमारे जैसे आम-आदमी का क्या होगा? वैसे तो आम-नेता लोग पानी पी-पीकर, आँखें तरेर कर यह बताने और भरोसा दिलाने में नहीं चूक रहे हैं कि लोकपाल आ भी गया तो क्या खाक होगा. नेताओं की बातों से आम-आदमी भी थोड़ा मोड़ा ही सही आश्वस्त तो हो ले रहा है कि भारत में लोकपाल-फोकपाल जैसे कितने आ जाएँ, मगर होगा जाएगा कुछ नहीं. फिर भी, भीतर से सभी डरे हुए हैं. आम-आदमी की तरह आम-नेता भी डरे हुए हैं.

कल्पना करें कि लोकपाल आ गया. शक्तिशाली. बल्कि महाशक्तिशाली. भ्रष्टाचार जड़-मूल से समाप्त हो गया. अब आपको अचानक कहीं जाना है. ट्रेन का टिकट बाबू लोकपाल का भय दिखाकर हाथ खड़े कर देगा. ट्रेवल एजेंट लोकपाल के भय के कारण अपना धंधा बदल चुका होगा. टीटीई का सबसे बड़ा दुश्मन तो लोकपाल ही है. वो मजबूरी का नाम लोकपाल बन चुका है. उसके पास पच्चीस बर्थ खाली होंगे चार्ट में, मगर वो किसी को भी नहीं देगा. एक तो खुन्नस कि सालों (देहली बेली ने गालियों को सांभ्रांत करार दे दिया है ये ध्यान रहे,) मुझे सुविधा शुल्क के नाम पर कुछ नहीं मिलेगा तो तुम्हें बर्थ की सुविधा क्यों दूं? और, ऊपर से लोकपाल का भयंकर भय कि यदि किसी को बर्थ अलाट कर दिया और कहीं दूसरे ने कंप्लेन कर दी तो?

अन्नाफ़ैक्टर के कारण हो गया ना आपके सडन ट्रैवल प्लान का गुड़-गोबर? इसीलिए, अन्ना! वापस जाओ!!

एक और उदाहरण लेते हैं.  >>>> पूरी पोस्ट यहाँ पढ़ें

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