छींटें और बौछारें
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(शीबा)
शीबा असलम फ़हमी का अत्यंत लोकप्रिय व बहु-चर्चित स्तंभ – जेंडर जिहाद हंस में पिछले कुछ अंकों से सिलसिलेवार जारी है. वैसे तो हंस अब पीडीएफ रूप में मई 2009 से नेट पर फिर से उपलब्ध हो गया है, मगर यूनिकोड में नहीं होने से बात नहीं बनती. रचनाकार के पाठकों के लिए खासतौर पर यह स्तंभ सिलसिलेवार रूप में यूनिकोडित कर, साभार प्रस्तुत किया जा रहा है.
जून 2009 का आलेख सब धान बाइस पंसेरी? परदा इधर : परदा उधर यहाँ पढ़ें
मई 2009 का आलेख संविधान और क़बीला यहाँ पढ़ें
शीबा का ब्लॉग – खयाल भी देखें
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