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कुदरत आखिर क्यों नाराज ?

एक सोंच
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संसार में कुदरत ने देखने के लिए खूबसूरत नजारे दिए हैं। जिसे देखकर दिल को कितना सुकून मिलता है। लेकिन कुदरत पिछले कुछ सालों से जैसे संसार में रह रहे प्राणी से नाराज चल रही हो। हर बार साल कुदरत का कहर संसार में कहीं न कई बरप रहा है। 25 अप्रैल दिन शनिवार को नेपाल में अचानक एक प्रकति का तांडव देखने को मिला। भूकंप के तेज झटके ने एक पल में नेपाल की साऱी खुशियां छीन ली।

इन तेज झटकों का असर भारत के कई राज्यों में भी देखने को मिला। कुदरत ने अपनी नाराजगी को लेकर हजारों बेगुनाहों की जान को छीन लिया। हसतें खिलखिलाते परिवारों में दुख का सागर उमड़ गया। हर तरफ शोर था बचावों। बड़ी-बड़ी इमारतों को ऐसे गिरते देखा गया, जिसे बनाने में सालों का समय लग जाता है। जिधर भी नजर जा रही थी, बस मलवे में दबे लोगों को निकाला जा रहा था। लाशों को ढेर देखकर आंख से आंसू नही खून आ रहा था। आखिर ऐसा क्या हुआ जो कुदरत संसार कें प्राणियों से नाराज हो रही है। कुदरत के सामने क्या बूढ़ा, क्या जवान, क्या बच्चा सब उसके इस क्रोध का शिकार हो गए।  बात करें हम अगर 16 जून 2013 का दिन,  भारत में उत्तराखंड के लिए विनाश का काला समय था।

जिसने हज़ारों की संख्या में लोगों की ज़िंदगियों को छीन लिया था । वहां जो बच भी गए, उनका घर कारोबार सब कुछ उजड़ गया। प्रकृति के इस कहर से केदारनाथ, रूद्र प्रयाग, उत्तरकाशी सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे। उत्तराखण्ड में आई उस भीषण आपदा को लेकर हर लोगों के मन में अलग अगल सवाल उठता था कि उत्तराखंड में आई ये विपदा प्राकृतिक है या इसके लिए प्रकृति के साथ मानवीय छेड़छाड़ जिम्मेदार है। बात कुछ भी रही हो पर देवभूमि के तबाही को अभी साल भर ही बीता था। कि धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू कश्मीर में हुई भारी बारिश की वजह से जम्मू और श्रीनगर में लोगों को जबरजस्त बाढ़ का सामना करना पड़ा है। एक बार फिर कुदरत का कहर जम्मू में देखने को मिला। आखिर अब प्रकृति इतनी क्यों खफा दिख रही है।  उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा के वो जख्म अभी ठीक तरह से भर नही पाए हैं।  केदारनाथ के दर्शन को गए वो लाखों लोगों ने जिस तरह से अपने ऊपर इस आपदा को झेला उसे सुनकर हमेशा लोगों की रूह कांप उठेगी। वहां के लोगों ने इस आपदा को धारी देवी की नाराजगी बताई। धारी देवी काली का रूप माना जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार उत्तराखंड के 26 शक्तिपीठों में धारी माता भी एक हैं। एक बांध  निर्माण के लिए 16 जून की शाम में 6 बजे शाम में धारी देवी की मूर्ति को यहां से विस्थापित कर दिया गया। इसके ठीक दो घंटे के बाद केदारघाटी में तबाही की शुरूआत हो गयी थी।  केदारनाथ में पहले भी बारिश होती थी, नदियां उफनती थी और पहाड़ भी गिरते थे। केदारनाथ में श्रद्धालु कभी भी इस तरह के विनाश का शिकार नहीं बने थे। प्रकृति की इस विनाश लीला को देखकर कुछ लोगों की आस्था की नींव हिल गई थी। धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले भी इस कहर से अछूते नही रहे । कुछ महीनों पहले जम्मू और कश्मीर में कुदरत ने भयावह कहर बरपाया है।  जम्मू में आई इस आपदा का सामना एक बार फिर सेना के जिम्मे गई थी ।

बाढ़ से आई भयानक तबाही में बहुत से लोगों ने अपनी जान गवाई । एक बार फिर कुदरत को नाराज करने का दुस्साहस किसी ने किया है । बचाव कार्य में लगी सेना लोगों को बाढ़ से बाहर निकाल कर सुरक्षित स्थानों पर ले गई थी।  धरती के स्वर्ग को घूमने गए लोग भी वहां इस भीषण तबाही में फसें पड़े थे। उनके परिजन भी परेशान हो रहे थे । नेपाल में भूकंप से मरने वालों की संख्या 5093 पहुंची। 80 लाख लोग प्रभावित। नेपाल में तेजी से राहत और बचाव कार्य हो रहा है ।  नेपाल में इस आपदा में फसें लोग और देश के लोग बस एक ही बात सोंच रहे है कि एक बार फिर कुदरत आखिर क्यों नाराज हुई  है ?

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