Menu
blogid : 20465 postid : 878657

धनकड़ के ये कैसे बोल?

एक सोंच
एक सोंच
  • 51 Posts
  • 19 Comments

किसान दिन-रात मेहनत कर अपनी फसल को उगाता है। लेकिन जब उसपर कुदरत मेहरबान नही होती तो इक पल में सारी मेहनत बर्बाद हो जाती है। देश की मजबूत अर्थव्यवस्था में खेती सबसे अहम है। सरकार को किसानों पर अधिक ध्यान देना चाहिए। देश की रीढ़ बने ये किसान आखिर कब तक इसका दंश झेलेगें। इस साल भारी बारिश और ओले से किसानों की फसल बर्बाद हो गई। कर्ज से दबे किसानों ने खुदकुशी करनी शुरू कर दी। जो कि देश के लिए काफी दुर्भाग्यपूर्ण बात है। किसान की फसल और मेहनत को बारिश ने एक झटके मे धो दिया।  ऐसे में जब किसान की आत्महत्या का मामला सामने आता है तो बहुत दुख होता है। दूसरों का पेट भरने के लिए अपना पेट काटकर मेहनत करने वाला किसान की ऐसी हालत क्यों हैं। सरकार को इस पर अमल करना चाहिए। लेकिन देश में किसान मरता है तो मरे खबर आएगी लोग भूल जाएगे। या फिर उल्टे सीधे बयानबाजी शुरू कर देगें।  हरियाणा के कृषि मंत्री ओ पी धनकड़ ने किसानों की खुदकुशी को कायर करार तो दे दिया। लेकिन क्या उनका दर्द समझने की कोशिश की। कभी सरकार ने ये जानने की कोशिश की कि किसान क्यों मर रहे है। कायर कहना उन्हें आसान है तो कह देते हैं। खुद सम्पन्न है तो क्या पता चले जमीनी हकीकत क्या है। अगर किसान ऐसा कदम उठा रहा है तो, उसे सरकार में बैठे ऐसे मंत्री कायर न बोलकर किसान को समझा सकते है। वो तो होने वाला नही है इनसे। पांच साल में एक बार ही ऐसा वक्त आता है। जब किसान इनके लिए भगवान बन जाता है। वक्त गया तो कौन पूजता है ऐसे भगवानों को। पड़े रहो किसी कोने में। मंत्री ओ पी धनकड़ को कौन समझाए जो दिन-रात में वो सुकून की रोटी खाते है उसके लिए किसानों ने कितना पसीना बहाया है। ख़ुदकुशी करने वाले किसानों के परिवार जहां सरकार की तरफ टकटकी लगाकर किसी तरह की राहत का इंतजार कर रहे हैं, यही ये नेता ऐसी बात कर रहे हैं। अरे जख्म पर मरहम नही लगा सकते तो उसे कुरोदों मत। धनकड़ के इस बयान से सरकार की किसानों के प्रति असंवेदनशीलता उजागर तो हो गई है। इन गरीबों पर अपनी राजनीतिक रोटी मत सेको। भारतीय कृषि बहुत हद तक मानसून पर निर्भर करती है। मानसून की असफलता के कारण नकदी फसलें नष्ट होना किसानों द्वारा की गई आत्महत्याओं का एक मुख्य कारण माना जाता रहा है। मानसून की विफलता, सूखा, कीमतों में वृद्धि, कर्ज आदि किसानों की समस्याएं बनती हैं।जिससे  बैंकों, महाजनों, बिचौलियों आदि के बीच में फँसकर भारत के विभिन्न हिस्सों के किसानों ने आत्महत्याएं की है। एक किसान को बैंक से लोन लेने के लिए कितनी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस बात को लेकर कोई नेता नही बोलेगा। लेकिन किसान की मौत पर सभी के राजनीतिक मंसूबे खुल जाते है। बारिश से मंड़ी में रखी फसल भी सड़ रही है। इस पर सरकार का कोई विचार नही होता। बस कायर कह देना उचित होता है। किसान के अनाज खरीद में भी धांधली होती है। उस पर क्या सोचती है सरकार। अगर किसी प्रदेश के का मामला होता है कि ये राज्य का मामला है। अरे क्या राज्य क्या केंद्र किसान तो पूरे देश का है। आखिर कब तक इन राजनीतिक करोगे। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाओगे। सभी मिलकर इनकी भलाई के बारे में सोचो। वरना वो दिन दूर नही होगा। देश में भुखमरी की शुरूआत हो जाएगी। सरकार और किसान के बीच का ये मतभेद देश के लिए खतरे का सबक बन सकता है।

रवि श्रीवास्तव

Email-ravi21dec1987@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh