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तन्हाई

raxcy bhai
raxcy bhai
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अभी अभी तो मैं पैरो पे
खड़ा ही हो पाया था
हर एक मुसीबतों को झेल कर आया था..
पीछे छोड़ आया था, पुरानी राहों को..
हर एक यादो को को भुला ही पाया था
नयी मोड़ पे एक नई जिंदगी की
गुजारा ही तो कर रहा था
तक़दीर की खोज मे ही तो निकला था
कुदरत की करिश्मा से
आगे की ओर निकल पड़ा था
बिपत्ति टला ही था की
नई एक विषाद आ खड़ा था..
सम्हलने की तागत ना था अब,
पहले ही तो ख़त्म हो चुका था
इन अकेली तन्हाइयो मे
घर के हर कोने कोने पे
नाम जो तेरा ही था
रात की हर एक तन्हाइयो पे
नजर आता जो तू ही था
माँ के जाने पे मुझे,
सम्हालता जो तू ही था
रात-दिन, भूखा-प्यासा जो मैं रहता था,
घर के किसी कोने पे पड़ा….
समझ न आता करू ही तो क्या,
दर्द सुनने को था फिर भी तू
साथ निभाने का बाधा जो तूने किया था
नहीं है कोई सिकवा तुझसे..
बगैर तेरे ना रह पाउँगा मैं..
भुला-भुला सा मैं रहता हूँ..
जुदा-जुदा सा मैं रहता हूँ..
बगैर तेरे बहुत अकेलापन महसूस करता हूँ
सारे जग मे तुझे ढूंढ़ता हूँ..
पीते पानी तुझे याद करता हूँ
देखने तुझे मैं तरसता हूँ,
बातो बातो पे हर किसी से उलझ जाता हूँ
अभी अभी तो मैं पैरो पे
खड़ा ही हो पाया था
अभी अभी सिमटने सा लगा हूँ
कुदरत करें किसीसे कोई फ़िदा ना हो,
अगर हो तो मौत से पहले जुदा ना हो

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