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बचपन

raxcy bhai
raxcy bhai
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क्या था बचपन?
सोचता भी हूँ तो,
स्वप्न सा प्रतीत होता l
वो हर एक दिन,
मुझे क्यों सताता ll
याद बनकर रह गयी है,
याद पे आ ठहरी है l
बचपन तो होती सबकी
पर बचपना तो मेरा ही था l
मासूमियत की हर एक सुबह
झलक परती आँखों पर,
जब दिन तो होती थी रात ढलकर
पर रात दोस्तों की साथ ही होती l
हर एक वोह शाम,
जब देर हो जाती घर आने पे,
रहती खड़ी माँ मेरी इंतजार मे l
वह भी क्या दिन था,
मार कर मुझे माँ रोती खुद थी l
गॉव की वह एक छोटी सी,
प्राइमरी स्कूल याद आती मुझे,
जहाँ पढ़ाई साइड,
आईआईटी बॉम्बे(खेल) फोकस था l
स्कूल के वह हर एक पल,
ज़ब टीचर छुट्टी देते समय से पहले..
मानो आशमान की बुलंदियों को छु आते ll
हर एक इच्छाएँ सारी ,
आ गया पूरा करने का मौका हमारी ,
दिन वही एक था ll
वह दिन आज भी,
याद आता मुझे….
ज़ब किसी शिकायत से,
..टीचर आते घर मेरे,
पहर दोपहर घर ना आते,
..खौफ से पिता के l
वह दिन आज भी,
याद आता मुझे….
ज़ब हलवाई के दुकान से,
खाकर हलवाई निकल लेते पीछे से l
वह दिन आज सताता मुझे ll
आम के सीजन की
वह हर एक रोज याद आता मुझे,
ज़ब खाना छोड़,
निकलते लूटने आम के बगीचे को था l
मासूमियत की उम्र वो था,
ज़ब गलती किए बिना मार खाना मुझे ही था l
कहानी बन अब उभर आई हैं,
साहित्य लिखने का बक्त अब आई है l
बचपन की वह एक बाते
कहे भी तो क्या कहे,
एक हर बाते लगे,
आपको लगे मुख्य सारांश जैसे l
ना कुछ पाने का आशा ,
ना कुछ खोने का डर…
वह तो बचपन ही था l
‌ये दौलत भी किया,
जो ना लोटा सके बचपन हमारी,
बचपन होती सबकी प्यारी ll

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