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न ही किसी से है शिकवा
और न ही शिकायत,
खुद से खफ़ा हूँ…
रहते हुए पलकों के सामने ,
अपने से ही फ़िदा हूँ l
ढूंढ़ने निकलता हूँ,
लांगकर एक हर मुसीबतो को,
रात-दिन कर एक बस तुमसे ही तो ,
अपने सिद्दत की प्यार…
पाने को तड़पता हूँ l
हर तरह से पहुँची हुई,
खिलाडी तुम भाती हो l
इश्क की जज़्बा सा ख्यालों लिए
आशिकी की बुखार लगा तुम गई हो l
क़यामती नखरो से ,
दिलचस्पी फितरतो सा कायदे लिए …
जान आशिकी के जड़ो पर,
डाल तुम गई हो l
….मानो खिलते हुए फूलों जैसे,
…..सौंदर्य उनका अनेक है l
….दिल अलग है तो क्या?
….जान हमारा भी अब एक है l
हाँ, याद मे हरपल तेरी गवारा सा फिरता हूँ l
बस तन्हा अब रहता हूँ…
क्यों छोड़ के तुम बेवफा निकले,
पल भर यादें की सहारे,
गमों से अब मुलाक़ात करने,
अब तन्हाई के साथ हम निकले …
पिंजड़े बंद पंछी सा,
रख कर बंद पिंजड़े मे,
..दुलार बच्चों सा क्या तुम भी मुझे करती हो l
.दिखावटी दुनिया मे,
रंग-रूप सहेज कर,
छिपाते , क्या???
अपनी असल रूप की तो न हो l
…….हो न हो सच्ची वाली प्यार,
…….हमें कहीं मिलते नहीं,
…….माता-पिता के दुलार,
………अपने बच्चों पर कभी कमते नही ll
फ़ितरत में थे मेरा,
गैरों पर ऐतेमाद करना l
करू अब कैसे भरोसा,
गैरो के प्यार पर,
ज़ब मजा लेते अपने ही,
अपनो की जज़्बातो का है ll
न जाने किस सिद्दत से,
बयां करती हैं दरारें,
दिल में तड़पन सी,
मेरे सपने है मानो अधूरे l
सोच भी अजूबा सा जज़्बाते बयां करते है :
बस दिल अब याद करता तुम्ही को है….
कह दे! एक बार वो भी,
उनका दिल मेरे लिए तड़पता है l
दौड़े चले जाऊंगा,
किसी के एक न मानूंगा
कहे तो आशमा को भी,
जमीं पे लाऊंगा ll
हाँ, उन्हीं ग़मों से मुझे अब जुदाई चाहिए,
बस एक पल की तन्हाई चाहिए…
अब ख़ुदा से पलभर की रहनुमाई चाहिए,
फ़िर एक पल की तन्हाई चाहिए l
……..दुनिया के लिए,
……..भले आप एक इंसान हो
…….परन्तु एक इंसान के लिए
……आप उनकी पूरा दुनिया हो lll
चलो अब तन्हाई का कुछ यु ही,
इलाज करते है……
लिख-लिख के पन्नों से बाते करते है !
देख, आज पन्ने भी पलटता हूँ तो,
वोह भी मुझसे मेरे सिद्दत की,
बाते बयां करते है l
गर्दिश की हर घड़ी मे,
साथ मेरा तन्हाई ने दिया है l
तो फिर आज मैं,
तन्हाई को तन्हाई में तन्हा कैसे छोड़ू..
इस तन्हाई ने तन्हाई में तन्हा मेरा साथ निभाया है ll
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