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पांच हम यार
उलझी हुई दुनिया के चारो ओर,
हम ओर पांच हम यार…
उस हॉस्टल पर झूम रहे थे l
पांच ही तो थे हम लंगोटी यारररर !
जिनके दिल मे हम बसते थे… ll.
चाहत सबकी थी बस सिम्पल सी,
ना कोई पैसो की,
ओर ना ही पेस्टीज की,
कट जाती थी वो दिन हमारी
जबरदस्त ओर सुनहरा लम्हा था,
दुनिया हमारा l
बनाए जो गॉड के थे,
फुर्सत से हम पांच यारररर ll
छोटी सी, प्यार भरी, ज्ञान की…
तो वो हॉस्टल एक हमारा भी था l
हॉस्टल की वो एक बात हमारा,
गूंजती कानो पर अब भी मेरा,
तब हम नादान थे,
छोटे जो थे,
ढलती रोज ने कर गया बड़ा हमें l
लाइफ मतलब अब ही ना जाने
पर लगता क्यों मुझे
लाइफ ये नहीं है मेरा,
है लगता ढलती उन रोज ने
लिया छीना मुझसे ही,
मेरा लाइफ को था ll
ना किसी से ईर्ष्या,
ना किसी से होड़,
ना ही बंदर थे हम,
ना ही सैतान
पर करने सैतानी की,
छोड़े एक कसर नहीं थे l
जुट जो गए एक हॉस्टल पर
हम याररर सारे…..
हाँ, भले ही छोटे हॉस्टल के थे,
पर रहते हम पांच भीआईपी वालो जैसे थे ll
एक वह हमारा कमीनापन,
हॉस्टल के उन जूनियरो का ही नहीं,
उड़ाते नींद हॉस्टल हेडटीचर का भी थे l
था हममे ही एक पढ़ाकू यार,
सोते-जागते,उठते-बैठते, खाते-पीते
जो तोता जैसे रडते यारररर ,
आखिर तोता बन ही उभरा था,
अपनी क्लास का फर्स्ट जो आता था l
दूसरा तो मोबाइल पर चिपका रहता,
एग्जाम मे चोरी करने का महारथ
जो इन्हे हासिल था l
तीसरे की तो बात ही कुछ ओर था..
नव आधुनिक युग मे जो रहता था l
वे टैलेंट मे नहीं,
टैलेंट उसमे घुला हुआ था l
चौथा था हम सबका दुलारा,
कंजूसी रग-रग मे भरा,
जितना चालक, उतना मोटा
सियार की हर गुण उसमें भरा l
पांचवी मैं सिंपल सा,
इन यारों का एक मात्र सहारा ll
मिलेगा पंछी को भी मंजिल,
ये उनके पर बोलते हैं ,
रहते हैं कुछ लोग खामोश…
क्योंकि उनके हुनर बोलते हैं ll…….
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