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माँ और बेटी का रिश्ता

गोली लगे या छर्रा... कहेंगे बात खर्रा
गोली लगे या छर्रा... कहेंगे बात खर्रा
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ADV. RAJIV KR. के इस कहानी में, मैं अपनी माँ और बहन के रिश्तें को काफी हद तक परिभाषित पाता हूँ!!!

-> मेरे पड़ोस में एक बारह साल
की बच्ची रहती है।
पहले उसके व्यवहार से मुझे
लगता था कि वह बहुत
जिद्दी और घमंडी है। उसके
पापा साधारण सी कोई
नौकरी करते है, पर उसकी हर
इच्छा को जरुर पूरी करते है।
काफी मन्नतो के बाद उनके घर
संतान हुई थी।
एक बार उसने अपने घर में नई चप्पल
के लिये बखेरा खड़ा कर दिया।
उसके पापा को आज
ही सैलरी मिली थी। पापा ने
काफी खूबसूरत चप्पल लाकर उसे
दी।
चप्पल लेकर वो काफी खुश थी।
उस दिन उसने चप्पल पहन के खुब
उछल-कुद की।
पर अगले दिन आश्चर्य चकित रह
गया मैं,जब वो अपनी #माँ से कह
रही थी कि ये नई चप्पल मैँ
नहीं पहनुंगी, मुझे अच्छी नहीं लग
रही है।
पुराना वाली ज्यादा अच्छी है।
सुनकर थोड़ा गुस्सा आया मुझे,
फिर शाम को मैनें उससे
पूछा कि जब चप्पले
नहीं पहननी थी, तो इतनी महँगी क्यों खरीदवाई ….
और एक दिन पूरा पहन के
क्यों घुमी?? अब तो वापस
भी नही हो सकती ये चप्पल…!!!
मेरी बात सुनकर वो हँसने लगी…
और बोली कि, भैया आप बुद्धु
ही रह जाओगे .,
वो तो मम्मी की चप्पल घिस गई
थी, नई चप्पल अपने लिये
खरीदवा नहीं रही थी।
वो तो सारा #प्यार मुझ पे
लुटा देना चाहती है। बस मै
बहाने से चप्पल खरीदवा के पहन
ली और इसलिये घुमी की दुकान
वाले भैया को वापस
ना की जा सके।
अब मम्मी उस चप्पल को पहन के
कहीं भी आ जा सकेंगी।
-अभिषेक भारती-

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