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माया Says….हर बार दिल की सुनना भी प्रॉब्लम है

Relationships & Counselling
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brain vs heartडियर फ्रेंड्स, कहते हैं दिल भले ही लेफ्ट में क्यों ना हो लेकिन होता हमेशा राइट है. वहीं दूसरी ओर दिमाग को कठोर और व्यवहारिक करार देने वाले भी लोग बहुत मिल जाते हैं. ऐसे में मतभेद इस बात पर होता है कि आखिर इन दोनों में से सुनें तो किस की? एक ही मसले पर दिल अलग राय देता है और दिमाग किसी अलग डायरेक्शन में बोलता है इसलिए समझ नहीं आता कि किस राह जाया जाए. टिया का सवाल भी कुछ ऐसा ही है क्योंकि वो भी इसी कंफ्यूजन में हैं कि दिल से काम लें या दिमाग से?


सवाल देखने में बहुत सिंपल है लेकिन इसके जवाब को समझना थोड़ा मुश्किल है. अब करें भी क्या!! कई बार हम आत्मकेन्द्रित हो जाते हैं तो कई बार हालात कुछ ऐसे बन जाते हैं जो हमें दूसरों के बारे में सोचने नहीं देते और कई बार ऐसा होता है जब हमारे पास अपने अलावा किसी और के बारे में सोचने का मौका ही नहीं होता. लेकिन ये सब हमें ही निर्धारित करना होता है कि परिस्थिति के अनुसार क्या चीज सही है. ये बात तो हम सभी जानते और मानते भी हैं कि एक मुद्दे पर दिल और दिमाग का फैसला अलग-अलग होता है. जिस बात पर दिल राजी होता है उसे दिमाग पूरी तरह नकार देता है वहीं दूसरी ओर दिमाग जिसे सही समझता है दिल के लिए वह निर्णय लेना कठोर हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप हम दिमाग के आगे दिल की बात मान लेते हैं.

टिया, एक बात आपको जरूर समझनी चाहिए कि ना तो दिल कभी गलत राय देता है और ना ही दिमाग का कुछ भी कहना गलत होता है. इस विषय पर गलत और सही का निर्णय सिर्फ परिस्थितियां करती हैं और समझदार इंसान वही है जो भले ही दिल और दिमाग में से किसी की भी सुने लेकिन करे वही जिसके दूरगामी परिणाम सभी के हित में हों. क्योंकि कई बार भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाने की वजह से हम सही निर्णय नहीं ले पाते और उस समय के लिहाज से जो सही दिख रहा होता है हम उसी को स्वीकार कर लेते हैं. अगर आपको लगता है आपका कोई निर्णय आगे चलकर आपके या आपके किसी करीबी को प्रभावित कर सकता है तो उसे वहीं छोड़कर आगे बढ़ जाएं. क्योंकि कई बार जो निर्णय लेना मुश्किल होता है असल में सही निर्णय भी वही होता है. इसलिए भावनाओं में बहकर किसी नतीजे पर पहुंचने से बेहतर है खुले दिमाग से सोच-समझकर कोई फैसला लें.  हो सकता है आपको अपना ही फैसला परेशान करे लेकिन एक बार आने वाले कल में छिपी खुशियों को तराशेंगे तो शायद आज का गम ‘कल’ का सुकून बन जाए.

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