हिंदू मान्यताओं के अनुसार अहोई अष्टमी का व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती है। ऐसी भी मान्यता है कि इस व्रत के पालन से माता के पुत्र को सफलता और संपन्नता का वरदान मिलता है। पुत्रों की खुशी के लिए महिलाएं अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। यह व्रत करवाचौथ के चार दिन बाद रखा जाता है। इस बार अहोई अष्टमी का शुभ मुहुर्त 21 अक्टूबर को पड़ रहा है। इस व्रत का फल हासिल करने के लिए कुछ नियमों का वर्णन बताया गया है। इन नियमों के पालन के बिना व्रत अधूरा माना जाता है। ऐसा भी कहा जाता है कि पूजा की सही विधियों और तरीकों को नजरअंदाज करना भारी भी पड़ सकता है।
सूर्योदय का महत्व
वरिष्ठ ज्योतिषाचर्य व वास्तु विशेषज्ञ आचार्य ज्योतिवर्धन साहनी के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई माता का व्रत रखने की परंपरा है। इस व्रत में सूर्योदय का बड़ा महत्व माना जाता है। सूर्योदय के बाद शुद्ध जल से स्नान के साथ ही व्रत शुरू हो जाता है। व्रत के दौरान अन्न और जल का त्याग करना होता है।
तारों के बिना व्रत अधूरा
व्रत पूरा शाम को होता है जब आसमान में तारे दिखने लगते हैं। ऐसा नियम है कि तारों को जल से अर्घ्य देने के बाद अहोई माता का पूजन किया जाता है। फिर मिष्ठान, मठरी और अन्य मेवा सामग्री दान करने के बाद माताएं भोजन करती हैं। इसलिए इस व्रत को करवाचौथ की तरह ही कठिन और समान माना जाता है।
माता पार्वती की आराधना
अहोई व्रत को लेकर प्रचलित कथाओं में माना जाता है कि माता पार्वती की आराधना के लिए इस व्रत का पालन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि माता पार्वती पुत्रों को बेहद स्नेह करती हैं और इसलिए वह अहोई व्रत का पालन करने वाली माताओं के पुत्रों को भी स्नेह करती हैं और वरदान देती हैं। पार्वती को अनहोनी को होनी में बदलने वाली माता अर्थात अहोई माता के रूप में पूजा जाता है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
अहोई व्रत की पूजा का मुहूर्त इस बार शाम 7.38 मिनट से शुरू होकर शाम 8.10 मिनट तक रहेगा। इस वर्ष पार्वती के पति शिव के दिन सोमवार को अहोई अष्टमी का अद्भुत योग पड़ रहा है। सोमवार होने से इस दिन माता पार्वती की विशेष अनुकंपा रहेगी। इन सभी नियमों और तरीकों के पालन से महिलाओं को मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी।…Next
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