हिंदू धार्मिक मान्यताओं के तहत भय को जीतने वाले काल भैरव अष्टमी पर उनकी जयंती मनाई जाती है। मान्यता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति उनकी प्रतिमा के समीप बैठकर पूजा और जागरण करता है उसके लंबे समय से रुके काम बनने शुरू हो जाते हैं। काल भैरव के प्रचंड स्वरूप से देवता और असुर भी डरते हैं।
शिवपुराण में जिक्र
काल भैरव को भगवान भोलेनाथ का स्वरूप माना जाता है। भक्तों को वरदान और प्यार करने वाले भगवान शिव के रूप को विश्वेश्वर के नाम से जाना जाता है। वहीं, भगवान शिव के रौद्र रूप यानी जो दोषियों को दंड देते हैं उन्हें काल भैरव के नाम से जाना जाता है। यह भी कहा जाता है कि काल भैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई है। काल भैरव का जिक्र शिवपुराण में एक भोलेनाथ के गण के रूप में किया गया है।
आठ दिशाओं के मालिक भैरव
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक भोलेनाथ ने पाप करने वाले लोगों को तत्काल दंड देने के लिए अपने कई अंशों को निगरानी के लिए ब्रह्मांड में तैनात किया। इसके लिए आठों दिशाओं की जिम्मेदारी आठ भैरव को दी गई। इन्हें सभी आठ दिशाओं का स्वामी भी कहा जाता है। इन आठ भैरव के भी आठ आठ स्वरूप हैं। इस तरह कुल 64 भैरव को जिक्र धार्मिक कथाओं में मिलता है।
देवता और असुरों में भय
भगवान भोलेनाथ के औघड़ स्वरूप के कारण काल भैरव तांत्रिक सिद्दियों और ताकतों के स्वामी हैं। इसीलिए तांत्रिक सिद्धियां हासिल करने के लिए काल भैरव जयंती पर लोग इनकी विशेष पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता कि काल भैरव सभी तरह के भूत, पिशाच और सभी तरह की नकारात्मक शक्तियों के स्वामी हैं। काल भैरव भगवान भोलेनाथ के औघड़ का स्वरूप का हिस्सा हैं इसलिए उनसे देवता और असुर भी डरते हैं।
काशी के कोतवाल काल भैरव
काशी में यूं तो काल भैरव के कई मंदिर हैं लेकिन सबसे प्रमुख मंदिरों में काल भैरव, बटुक भैरव,आनन्द भैरव मंदिर शामिल हैं। एक कथा के मुताबिक काल भैरव के हाथ ब्रह्म हत्या हो गई। इस पाप से मुक्ति के लिए वह अपने स्वामी भगवान भोलेनाथ से प्रार्थना करने पहुंचे तो भोलेनाथ ने उन्हें काशी में रहकर तपस्या करने और काशी की रखवाली करने का आदेश दिया। इसके बाद से काल भैरव काशी के कोतवाल कहलाए। कहा जाता है कि काशी में प्रवेश के लिए यमराज को भी काल भैरव से इजाजत लेनी पड़ती है।…Next
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