पौराणिक कथाओं के अनुसार हस्तिनापुर के लिए भीष्म पितामह ने जितना बलिदान दिया उतना शायद ही किसी ने दिया हो। काफी टालने के बाजवूद शुरू हुए महाभारत युद्ध के पहले ही दिन भीष्म पितामह ने तांडव मचा दिया था। उनके क्रोध को थामने के लिए अर्जुन ने उन्हें बाणशैय्या पर लिटा दिया था। माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म ने अपने प्राण त्यागे थे। इसलिए इस तिथि को शास्त्रों में काफी महत्वपूर्ण बताया गया है।
माघ माह की अष्टमी खास
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक फरवरी की 2 तारीख को माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि है। यह तिथि भारत के इतिहास में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखती है। भीष्म अष्टमी का मुहूर्त एक फरवरी की शाम 06:10 बजे से दो 2 फरवरी की शाम 20:00 बजे तक रहेगा। इस दौरान पितरों का श्राद्ध करने की परंपरा है। कुछ मान्यताओं के अनुसार पिता के जीवित रहते ही इस तिथि के दिन कोई भी बेटा श्राद्ध कर सकता है।
पौराणिक कथा और भीष्म पितामह
पौराणिक कथा के अनुसार भीष्म का असली नाम देवव्रत था और वह देवी गंगा और राजा शांतनु के आठवें पुत्र थे। देवव्रत को मां गंगा बचपन में ही अपने साथ ले गईं थीं और उन्हें शास्त्र और शस्त्र विद्या हासिल करने के लिए भगवान परशुराम के पास भेजा था। सभी विद्याएं हासिल जब देवव्रत वापस हस्तिनापुर अपने पिता शांतनु के पास लौटे तब तक उनके पिता सत्यवती के प्यार में दीवाने हो गए।
विवाह न करने की प्रतिज्ञा
अपने पुत्रों को हस्तिनापुर का सिंहासन दिलाने के लिए सत्यवती ने शांतनु पर दबाव डाला तो देवव्रत ने पिता की खुशी के लिए कभी विवाह न करने और खुद राजा बनने की प्रतिज्ञा ली। देवव्रत इससे पहले भी बचपन में ही पिता शांतनु से आजीवन ब्रह्मचर्य पालन की प्रतिज्ञा ले चुके थे। देवव्रत के इस बलिदान के बाद उन्हें भीष्म के नाम से पुकारा जाने लगा। भीष्म आजीवन हस्तिनापुर के संरक्षक रहे।
परशुराम और शुक्राचार्य से विद्या
परशुराम और शुक्राचार्य से शास्त्र और शस्त्र विद्या हासिल करने वाले भीष्म इतने बलशाली थे कि पृथ्वी पर उन्हें हराने वाला कोई नहीं था। महाभारत युद्ध में भीष्म को राजा धृतराष्ट्र की आज्ञा का पालन करना पड़ा और वह विवश होकर कौरवों की ओर से पांडवों के खिलाफ युद्ध में उतरे। महाभारत युद्ध के पहले ही दिन भीष्म पितामह ने पांडव पक्ष से लड़ रहे विराट नरेश के दोनों पुत्रों उत्तर और श्वेत का वध कर दिया।
महाभारत युद्ध में तांडव मचाय
युद्ध के पहले दिन ही भीष्म के तांडव से पांडव सेना में खलबली मच गई और उन्हें रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने अर्जुन को उनका सामने करने को कहा। युद्धक्षेत्र में सामने पितामह को देखकर अर्जुन ने लड़ने से मना कर दिया और अपना धुनष रथ पर रख दिया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया तो अर्जुन को समझ में आया और वह लड़ने को तैयार हुए। अर्जुन ने भीष्म को रोकने के लिए उन्हें अपने बाणों से छेद दिया। भीष्म पितामह के शरीर को सैकड़ों बाण भेद गए।
सूर्यदेव के उत्तरायण में आने पर देहत्याग
भीष्म पितामह के न चाहने पर मृत्यु उन्हें छू भी नहीं सकती थी। सूर्यदेव के दक्षिणायन में होने की वजह से उन्होंने अपने प्राण नहीं त्यागे। 18 दिन तक चले महाभारत युद्ध के समाप्त होने के बाद भी वह बाण शैय्या पर लेटे रहे। जब सूर्यदेव दक्षिणायन से चलकर उत्तरायण में आ गए तब भीष्म पितामह ने माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को अपने प्राण त्यागे। पितामह की वजह से इस दिन पिता के श्राद्ध करने और व्रत रखने का विधान शुरु हुआ।…Next
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