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अपने पिता के विवाह के लिए भीष्म को लेनी पड़ी ये प्रतिज्ञा, बदल गई महाभारत की कहानी

महाभारत के पात्रों में कई योद्धा ऐसे रहे हैं जिनके जीवन पूर्वजन्म की किसी घटना के कारण श्राप बन गया. महाभारत के हर योद्धा से पूर्वजन्म की कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है. जिससे उनका अगला जन्म भी प्रभावित होता रहा. महाभारत के योद्धाओं में से एक भीष्म के जीवन से एक ऐसी कहानी जुड़ी है जिसे सुनकर ये पता चलता है कि उनका नाम देवव्रत से भीष्म क्यों पड़ा.


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आइए जानते हैं भीष्म के जीवन की वो कहानी


एक कन्या को देखकर मोहित हुए थे शांतनु

एक दिन राजा शांतनु यमुना नदी के तट पर घूम कर रहे थे. तभी उन्हें वहां एक सुंदर युवती दिखाई दी. परिचय पूछने पर उसने स्वयं को निषाद कन्या सत्यवती बताया. उसके रूप को देखकर शांतनु उस पर मोहित हो गए तथा उसके पिता के पास जाकर विवाह का प्रस्ताव रखा. तब उस युवती के पिता ने शर्त रखी कि यदि मेरी कन्या से उत्पन्न संतान ही आपके राज्य की उत्तराधिकारी हो तो मैं इसका विवाह आपके साथ करने को तैयार हूं.


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पिता के विवाह के लिए ली विवाह ना करने की प्रतिज्ञा यह सुनकर शांतनु ने निषादराज को मना कर दिया, क्योंकि वे पहले ही देवव्रत को युवराज बना चुके थे. इस घटना के बाद राजा शांतनु चुप से रहने लगे. देवव्रत ने इसका कारण जानना चाहा तो शांतनु ने कुछ नहीं बताया. तब देवव्रत ने शांतनु के मंत्री से पूरी बात जान ली तथा स्वयं निषादराज के पास जाकर पिता शांतनु के साथ विवाह के लिए उनकी पुत्री को मांगा. निषादराज ने देवव्रत के सामने भी वही शर्त रखी. तब देवव्रत ने प्रतिज्ञा लेकर कहा कि आपकी पुत्री के गर्भ से उत्पन्न महाराज शांतनु की संतान ही राज्य की उत्तराधिकारी होगी.


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इस कारण देवव्रत से नाम पड़ा भीष्म

तब निषादराज ने कहा यदि तुम्हारी संतान ने मेरी पुत्री की संतान को मारकर राज्य प्राप्त कर लिया तो क्या होगा? तब देवव्रत ने सबके सामने अखण्ड ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली तथा सत्यवती को ले जाकर अपने पिता को सौंप दिया. तब पिता शांतनु ने देवव्रत को इच्छामृत्यु का वरदान दिया. देवव्रत की इस भीषण प्रतिज्ञा के कारण ही उनका नाम भीष्म पड़ा. इस तरह भीष्म की प्रतिज्ञा ने महाभारत की कहानी को प्रभावित किया वरना महाभारत की कहानी कुछ और होती…Next


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