महाभारत के सबसे पराक्रमी योद्धा भीष्म, जिनका असली नाम देवव्रत था। महाभारत में पूर्वजन्म से जुड़ी हुई कई कहानियां मिलती है। पूर्वजन्म की ऐसी ही कहानी है भीष्म की, जिसे उनके जन्म और मृत्यु के कारणों का पता चलता है। भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था जिस कारण से मृत्युशैय्या पर 58 दिन तक रहने के बाद उन्होंने 59वें दिन मृत्यु को चुना।
श्राप की वजह से मिला मनुष्य योनि में जन्म
महाभारत के आदि पर्व के अनुसार एक बार पृथु और वसु अपनी पत्नियों के साथ मेरु पर्वत पर भ्रमण कर रहे थे, वहीं वशिष्ठ ऋषि का आश्रम भी था। एक वसु पत्नी की नजर ऋषि वशिष्ठ के आश्रम में बंधी नंदिनी नामक गाय पर पड़ गई। उसने उसे अपने पति द्यौ नामक वसु को दिखाया और वो गाय लाने को कहा। पत्नी की बात मानकर द्यौ ने अपने भाइयों के साथ उस गाय का हरण कर लिया। जब महर्षि वशिष्ठ अपने आश्रम आए, तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से सारी बात जान ली। वसुओं के इस कार्य से क्रोधित होकर ऋषि ने उन्हें मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। जब सभी वसु ऋषि वशिष्ठ से क्षमा मांगने आए। तब ऋषि ने कहा कि तुम सभी वसुओं को तो शीघ्र ही मनुष्य योनि से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन इस द्यौ नामक वसु को अपने कर्म भोगने के लिए बहुत दिनों तक पृथ्वीलोक में रहना पड़ेगा।
इस तरह निकाला श्राप का तोड़
द्यौ ने बहुत माफी मांगने के बाद ऋषि ने कहा ‘एक बार दिया गया श्राप वापस नहीं लिया जा सकता इसलिए अब केवल इस श्राप को संशोधित किया जा सकता है। भूलोक को दुखों की भूमि भी कहा जाता है, जहां सभी मनुष्य अपने कर्म भोगकर मोक्ष पाना चाहते हैं। ऐसे में तुम्हें भी अपने कर्म भोगने पड़ेंगे, लेकिन तुम्हें इच्छामृत्यु का वरदान है यानि तुम चाहो मृत्यु को गले लगा सकते हो। बिना इच्छा के कोई भी अस्त्र-शस्त्र तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती अपितु तुम्हें कष्ट जरूर होगा, लेकिन बिना अपनी इच्छा के मृत्यु नहीं होगी।’
इस वजह से 59वें दिन चुनी मृत्यु
इस प्रकार महाभारत के अनुसार द्यौ नामक वसु ने गंगापुत्र भीष्म के रूप में जन्म लिया। श्राप के प्रभाव से वे लंबे समय तक पृथ्वी पर रहे तथा अंत में मृत्युशैया पर 58 दिनों के बाद सूरज के उत्तरायण दिशा में होने पर इच्छामृत्यु से प्राण त्यागे। उनके अनुसार सूर्य के उत्तरायण में होने पर मृत्यु हो जाने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है…Next
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