आचार्य चाणक्य ने मनुष्यों को जीवन के बारे में ऐसी बातें कही हैं जिसपर अमल करके जीवन में दुविधा में फंसा कोई भी व्यक्ति समस्या का हल पा सकता है. ऐसा माना जाता है कि आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं. जो भी व्यक्ति नीतियों का पालन करता है, उसे जीवन में सभी सुख-सुविधाएं और कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. लेकिन उनकी बताई हुई कुछ नीतियों को आज के आधुनिक युग में अमल में नहीं लाया जा सकता. इसका कारण ये है कि आज लोग सामाजिक दायरों को तोड़कर बदलाव की बयार में आगे बढ़ चुके हैं. ऐसे में इन नीतियों को अपनाना बेहद मुश्किल है. लेकिन फिर भी लोग चाणक्य नीतियों को जानना चाहते हैं. चलिए हम आपको बताते हैं मनुष्य को किस अवस्था में कोई विशेष काम नहीं करना चाहिए.
चाणक्य नीति: अपनी इन ताकतों से राजा, ब्राह्मण और स्त्री कर सकते हैं दुनिया पर राज
बिना अभ्यास किए शास्त्रों का ज्ञान व्यर्थ
किसी भी व्यक्ति के लिए अभ्यास के बिना शास्त्रों का ज्ञान विष के समान है. शास्त्रों के ज्ञान का निरंतर अभ्यास किया जाना चाहिए. यदि कोई व्यक्ति बिना अभ्यास किए स्वयं को शास्त्रों का ज्ञाता बताता है तो भविष्य में उसे पूरे समाज के सामने अपमान का सामना करना पड़ सकता है. ज्ञानी व्यक्ति के अपमान किसी विष के समान ही है. इसीलिए कहा जाता है कि अधूरा ज्ञान खतरनाक होता है.
वृद्ध मनुष्य के लिए नवयौवना अभिशाप
कोई वृद्ध या शारीरिक रूप से कमजोर पुरुष किसी सुंदर और जवान स्त्री से विवाह करता है तो वह उसे संतुष्ट नहीं कर पाएगा. अधिकांश परिस्थितियों में वैवाहिक जीवन तभी अच्छा रह सकता है, जब पति-पत्नी, दोनों एक-दूसरे को शारीरिक रूप से भी संतुष्ट करते हैं. यदि कोई वृद्ध पुरुष नवयौवना को संतुष्ट नहीं कर पाता है तो उसकी पत्नी पथ भ्रष्ट हो सकती है. पत्नी के पथ भ्रष्ट होने पर पति को समाज में अपमान का सामना करना पड़ता है. ऐसी अवस्था में किसी भी वृद्ध और कमजोर पुरुष के लिए नवयौवना विष के समान होती है.
अपना काम करवाने के लिए इस तरह आजमाएं चाणक्य की साम, दाम, दंड और भेद की नीति
पेट खराब होने पर न करें भोजन
यदि व्यक्ति का पेट खराब हो तो उस अवस्था में भोजन विष के समान होता है. पेट स्वस्थ हो, तब तो स्वादिष्ट भोजन देखकर मन तुरंत ही ललचा जाता है, लेकिन पेट खराब होने की स्थिति में छप्पन भोग भी विष की तरह प्रतीत होते हैं. ऐसी स्थिति में उचित उपचार किए बिना स्वादिष्ट भोजन से भी दूर रहना ही श्रेष्ठ रहता है.
गरीब व्यक्ति का सभा या समारोह में जाना व्यर्थ
किसी गरीब व्यक्ति के कोई सभा या समारोह विष के समान होता है. किसी भी प्रकार की सभा हो, आमतौर वहां सभी लोग अच्छे वस्त्र धारण किए रहते हैं. अच्छे और धनी लोगों के बीच यदि कोई गरीब व्यक्ति चले जाएगा तो उसे अपमान का अहसास होता है. इसीलिए चाणक्य कहते हैं कि किसी स्वाभिमानी गरीब व्यक्ति के लिए सभा में जाना ही विषपान करने जैसा है…Next
Read more :
Read Comments