भारतीय पंचांग के अनुसार कार्तिक मास में दीपावली यानी अमावस्या के 6 दिन बाद शुरू छठ का पर्व शुरू होता है। पूजा का आरंभ पहले दिन नहाय खाय के साथ होता है। छठी देवी को सूर्य देव की मानस बहन माना गया है, इसलिए इस मौके पर भगवान भास्कर की अराधना पूरी निष्ठा व परंपरा के साथ की जाती है। यह पर्व पूर्वी भारत में काफी प्रचलित है और मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में पूरी आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। दो दिन तक बिना पानी पिए यह व्रत रखा जाता है। छठ की पूजा में साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
पुराणों में षष्ठी माता
श्वेताश्वतरोपनिषद् में बताया गया है कि परमात्मा ने सृष्टि रचने के लिए खुद को दो भागों में बांटा। दाहिने भाग से पुरुष और बाएं भाग से प्रकृति का रूप आया। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्ठी है। पुराण के अनुसार यह देवी सभी बालकों की रक्षा करती हैं और उन्हें लंबी आयु देती हैं। ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में ऐसा जिक्र मिलता है।
”षष्ठांशा प्रकृतेर्या च सा च षष्ठी प्रकीर्तिता,
बालकाधिष्ठातृदेवी विष्णुमाया च बालदा।
आयु:प्रदा च बालानां धात्री रक्षणकारिणी,
सततं शिशुपार्श्वस्था योगेन सिद्धियोगिनी”।
षष्ठी देवी को कहते हैं छठ मैया
षष्ठी देवी को ही स्थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है। षष्ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं। आज भी देश के कई हिस्सों में बच्चों के जन्म के छठे दिन षष्ठी पूजा या छठी पूजा का चलन है। पुराणों में इन देवी के एक अन्य नाम कात्यायनी का भी जिक्र है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी को होती है।
षष्ठी तिथि को सूर्य पूजा का महत्व
हमारे धर्मग्रथों में अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा के लिए एक विशेष तिथि का वर्णन मिलता है। इसी तरह सूर्य की पूजा के साथ सप्तमी तिथि जुड़ी है। सूर्य सप्तमी, रथ सप्तमी जैसे शब्दों से यह स्पष्ट होता है। मगर छठ पर्व में सूर्य की पूजा षष्ठी को की जाती है, जो अलग बात लगती है। सूर्यषष्ठी व्रत में ब्रह्म और शक्ति (प्रकृति और उनका अंश षष्ठी देवी), दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है, इसलिए व्रत करने वाले को दोनों की पूजा का फल मिलता है। इस पूजा की यही बात इसे खास बनाती है।
लोकगीतों में होता है स्पष्ट
”अन-धन सोनवा लागी पूजी देवलघरवा हे,
पुत्र लागी करीं हम छठी के बरतिया हे”
छठ पर्व में गाए जाने वाले लोकगीतों में यह पौराणिक परंपरा जीवित है। दोनों की पूजा साथ-साथ किए जाने का उद्देश्य लोकगीतों से भी स्पष्ट होता है। व्रत करने वाली महिलाएं इस लोकगीत में कहती हैं कि वे अन्न-धन, संपत्ति आदि के लिए सूर्य देवता की पूजा कर रही हैं। वहीं, संतान के लिए ममतामयी छठी माता या षष्ठी पूजन कर रही हैं। इससे सूर्य और षष्ठी देवी की साथ-साथ पूजा किए जाने की परंपरा और उसका कारण स्पष्ट होता है।…Next
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