हिंदू मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि बेहद महत्वपूर्ण मानी गई है। इस दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा और उनकी आराधना का विधान है। चित्रगुप्त देवताओं के लेखपाल होने के नाते सभी मनुष्यों के पाप और पुण्य का लेखा जोखा भी रखते हैं। कार्तिक अमावस्या के दिन दीवाली पूजा के दूसरे दिन भगवान चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि चित्रगुप्त की पूजा से मनुष्यों को सारे पापों से मुक्ति मिल जाती है।
भगवान ब्रह्मा ने चित्रगुप्त की रचना की
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान चित्रगुप्त की जन्म कथा बहुत ही रोचक है। यमराज ने भगवान ब्रह्मा से अपने लिए सहायक की मांग की। इस दौरान ब्रह्मा जी ध्यान में लीन होने जा रहे थे। जब तक यमराज अपनी बात खत्म करते भगवान ब्रह्मा ध्यान में लीन हो गए। एक हजार वर्ष बाद जब उनका ध्यान पूरा हुआ तो उन्हें यमराज की कही बात याद आई। उन्होंने यमराज के काम को सरल करने के लिए अपनी काया से चित्रगुप्त को उत्पन्न किया। कुछ लोगों का मानना है कि वर्तमान में कायस्थ समाज के लोग भगवान चित्रगुप्त के ही वंशज हैं।
यमराज की बहन का विवाह चित्रगुप्त से हुआ
सूर्य देव की पत्नी संज्ञा ने दो जुड़वां संतानों को जन्म दिया। पुत्र का नाम यमराज और पुत्री का नाम यमुना रखा। जब यमुना बड़ी हुईं तो माता संज्ञा को उनके विवाह की चिंता सताने लगी। बाद में यमराज के सहायक के तौर पर काम कर रहे भगवान चित्रगुप्त से यमुना का विवाह संपन्न कराया गया। इस तरह से चित्रगुप्त यमराज के बहनोई बन गए। ऐसी मान्यता है कि इसी रिश्ते की वजह से चित्रगुप्त की पूजा करने वाले भक्तों को यमराज का कोप नहीं भोगना पड़ता है। चित्रगुप्त को देवताओं का लेखपाल भी माना जाता है।
बहन से मिलने पहुंचे यमराज
चित्रगुप्त पूजा के साथ ही कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज पर्व भी मनाया जाता है। इस पर्व की कथा के अनुसार जुड़वां भाई बहन यमराज और यमुना में बड़ा स्नेह था। विवाह के पश्चात यमुना चित्रगुप्त के महल में रहने लगीं। बीच बीच में वह अपने भाई यमराज का कुशलक्षेम पूछने उनके घर चली जाती थीं। लेकिन, यमराज कभी उनके घर नहीं आते थे। इससे यमुना काफी दुखी रहती थीं। एक बार अचानक यमराज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को बहन यमुना के घर पहुंच गए।
यमुना को खुशहाल देख दिया वरदान
यमराज को अपने घर में देख यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। यमुना ने पकवान और मिठाइयां भाई को खिलाईं और कुशलक्षेम पूछा। यमराज ने अपने आने प्रयोजन बताते हुए कहा कि मैं तुम्हारे घर नहीं आता था तो तुम दुखी रहती थी। मैं तुम्हें दुख में नहीं देख सकता हूं। इसलिए मैं अचानक तुमसे मिलने आ गया। लौटते समय यमराज ने अपनी बहन से वरदान मांगने को कहा। यमुना ने कहा कि आप प्रतिवर्ष इसी दिन मेरे घर में पधारने का वरदान दीजिए। बहन का भोलापन देख यमराज भावविह्वल हो गए और उन्हें आशीर्वाद दिया। यमराज ने कहा कि इस दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाएगा और उसका आतिथ्य स्वीकार कर उसे उपहार देगा उसे काल यानी मैं कभी भयभीत नहीं करूंगा।
चित्रगुप्त की पूजा और भाई दूज पर्व
मान्यताओं के अनुसार यमुना को अपनी ससुराल में खुशहाल देख यमराज ने वरदान दिया कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जो भाई अपनी बहन के घर जाएगा और उसे उपहार देगा। उसे काल का भय नहीं सताएगा। इसके अलावा जो भी इस दिन मेरे बहनोई चित्रगुप्त की पूजा और आराधना करेगा उसके दुखों का नाश होने के साथ उसे पापों से मुक्त कर दिया जाएगा। यमराज बहन को आशीर्वाद देकर यमलोक चले गए। माना जाता है कि तभी से भाई दूज पर्व की शुरुआत हो गई।…Next
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