हिंदू कैलेंडर के अनुसार मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। प्रदोष काल में जन्में दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और शिव का अंश माना जाता है। दत्तात्रेय ने शैव, वैष्णव और शाक्त धर्म के लोगों को एक किया। मान्यता है कि दत्तात्रेय की पूजा करने से लंबे समय से चल रहे विवाद खत्म होते हैं, कई पीडि़यों की दुश्मनी का अंत होता और कोर्ट कचहरी में पड़े विवादों से भी छुटकारा हासिल होता है।
अत्रि के तप से हिला बैकुंठ
हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक दत्तात्रेय भगवान विष्णु स्वरूप हैं। उनकी जन्मकथा के मुताबिक महर्षि अत्रि को पुत्र की लालसा हुई तो उन्होंने भगवान विष्णु का तप करना शुरू कर दिया। उनके तप से बैकुंठ में बैठे विष्णु प्रसन्न हो गए और उन्होंने अत्रि के समक्ष प्रस्तुत होकर वरदान मांगने को कहा। विष्णु के रूप सौंदर्य को देखकर अत्रि ने उन्हें पुत्र स्वरूप मांग लिया। विष्णु ने वरदान दिया और अत्रि के पुत्र स्वरूप में जन्में जो दत्तात्रेय कहलाए।
तीनों देवों का स्वरूप
कई पौराणिक कथाओं में दत्तात्रेय को ब्रह्मा विष्णु और शिव का अंश बताया गया है। उन्हें त्रिमूर्ति भी कहा जाता है। दत्तात्रेय ने शैव, वैष्ण और शाक्त मत के लोगों के बीच संधि कराकर उन्हें एक किया। तीनों के स्वरूप के तौर धरती पर अवतरित हुए दत्तात्रेय मनुष्यों की मदद करने उन्हें लालच, ईर्ष्या, विवाद और झगड़ों से बचाने के लिए तत्पर रहते थे। वह किसी का भी विवाद चुटकी में खत्म कर देते थे। इसीलिए मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को दत्तात्रेय की पूजा करने से कोर्ट कचहरी में पड़े विवाद, रंजिश आदि खत्म हो जाती है।
पूजा विधि मुहूर्त और नियम
भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने का मुहूर्त 11 दिसंबर सुबह 10:59 बजे से शुरू होगा जो 12 दिसंबर की सुबह 10:42 बजे तक रहेगा। इस दौरान भगवान दत्तात्रेय के त्रिमूर्ति रूप की पूजा की जाती है। इसके लिए सुबह गंगाजल से स्नान के बाद त्रिमूर्ति रूप की प्रतिमा, तस्वीर को स्थापित कर कमल पुष्प और गंगाजल अर्पित कर पूजा की जाती है। इस दौरान ब्रह्म, विष्णु और शिव के मंत्रों का जाप करना शुभकारी बताया गया है। ध्यान रहे कि पूजा के दौरान घर में शांति रहे और साधक सांसारिक सुखों से दूर रहे।…Next
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