सनातन धर्मशास्त्रों में मानवों को श्रेष्ठ आचरण आत्मसात करने और व्यवहार में लाने की शिक्षा का वर्णन मिलता है. श्रेष्ठ आचरण को व्यवहार में लाने से कई सामाजिक विसंगतियाँ समाप्त हो जाती है और जीने के उच्चतम स्तर तक पहुँचा जा सकता है. लेकिन श्रेष्ठ आचरण का संबंध केवल नैतिक मूल्यों तक ही सीमित नहीं है. इसका संबंध मानवों के मृत्यु के तरीकों से है.
गरूड़ पुराण में यह बताया गया है कि सत्कर्मों से जहाँ अपनी मृत्यु को सुगम, कष्टरहित बनाया जा सकता है, वहीं गलत कर्मों का रास्ता मानवों को पीड़ादायी मृत्यु के द्वार पर ला खड़ा करता है. गरूड़ पुराण में उन कारणों का उल्लेख मिलता है जिनसे मानवों के जीवन त्यागने का तरीका भयावह हो जाता है. पढ़िये गरूड़ पुराण में वर्णित ऐसे ही कुछ तरीकों को…..
मिथ्या और मृत्यु
मिथ्या वचन कहने वालों, मिथ्या शपथ खाने वालों और झूठी गवाही देने वालों की मृत्यु अचेतावस्था में होती है. जीवन में इस तरह के कृत्य करने वालों को अपनी मौत से पहले तरह-तरह के भयावह जीवों के दर्शन होते हैं जिनको देख उनका शरीर भय से काँपने लगता है. उसकी मुख से साफ ध्वनियाँ नहीं निकल पाती जिससे वो अपनी बात स्पष्टता से नहीं कह पाता. इस प्रकार के इंसानों की मृत्यु अत्यंत कष्टदायी होती है.
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रौशनी और मृत्यु
पुराणों के अनुसार मानवों को अपने अंत समय का आभास भी मृत्यु-पूर्व हो जाता है. इसके लिए कुछ विशिष्ट लक्षणों का वर्णन किया गया है. इनमें कहा गया है कि किसी इंसान को अचानक सूर्य-चंद्र की अथवा अग्नि से उत्पन्न होने वाली रौशनी दिखाई न देना उनकी मृत्यु की अवधि समीप होने के लक्षण होते हैं.
शारीरिक अंग और मृत्यु
अचानक किसी इंसान को चारों ओर सबकुछ श्याम दिखना, जिह्वा का सूजना, दाँतों से मवाद का निकलना मृत्यावधि समीप आने के संकेत हैं.
परछाई और मृत्यु
जल, तेल अथवा दर्पण में अपनी परछाई न दिखना अथवा विकृत दिखना भी मौत के नजदीक आने के संकेत हैं. परछाई में अपना सिर न दिखना भी ऐसा ही लक्षण माना जाता है.
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काग, गिद्ध और मृत्यु
कागों और गिद्धों से घिरे सूर्य-चंद्र का लाल दिखाई पड़ना मृत्यावधि के अत्यंत समीप होने के लक्षण हैं.
किसी भी संप्रदाय के शास्त्रों में मानवों को अपनी जीवनशैली को उत्तम बनाने के लिए उच्चतम मानकों को व्यवहार में लाने की बात कही गयी है. जहाँ बौद्ध संप्रदाय में जीवन जीने के आठ मार्गों का उल्लेख मिलता है, वहीं जैन संप्रदाय में सादा जीवन और भोग विलासिता से दूर रहने की बात कही गई है. इस्लाम संप्रदाय में भी ईमान के मूसल जैसा होने की शिक्षा दी गई है. Next…
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