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देवी पार्वती ने इस छल के कारण शिव, विष्णु, नारद, कार्तिकेय और रावण को दिया था श्राप, वामनपुराण में वर्णित है यह कहानी

पुराणों में कहा गया है कि जीवन में कभी किसी के साथ छल-कपट नहीं करना चाहिए, क्योंकि जिस भी व्यक्ति के साथ हम छल-कपट करते हैं उसे सच्चाई जानने के बाद आघात पहुंचता है। ऐसे में उसके हृदय से निकली हुई ‘आह’ सीधे भगवान तक पहुंचती है। वहीं दूसरी तरफ आहत होकर किसी सच्चे मनुष्य द्वारा दिया गया श्राप किसी भी व्यक्ति का अहित कर सकता है। छल-कपट से जुड़ी हुई ऐसी ही एक कहानी वामनपुराण में मिलती है, जिसमें माता पार्वती शिव और अन्य देवताओं द्वारा स्वंय के साथ किया हुआ छल सहन नहीं सकी और क्रोधित होकर शिव सहित अन्य देवताओं को श्राप दे देती है। एक बार भगवान शंकर ने माता पार्वती के साथ द्युत (जुआ) खेलने की इच्छा प्रकट की।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal19 Sep, 2019

 

 

इस खेल में भगवान शंकर अपना सब कुछ हार गए। हारने के बाद भोलेनाथ अपनी लीला को रचते हुए पत्तो के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर चले गए। कार्तिकेय को जब सारी बात पता चली, तो वह माता पार्वती से समस्त वस्तुएं वापस लेने आए। इस बार खेल में पार्वती जी हार गईं तथा कार्तिकेय शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। अब इधर पार्वती भी चिंतित हो गईं कि सारा सामान भी गया तथा पति भी दूर हो गए। पार्वती ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र गणेश को बताई तो मातृ भक्त गणेश स्वयं खेल खेलने शंकर भगवान के पास पहुंचे। गणेश जीत गए तथा लौटकर अपनी जीत का समाचार माता को सुनाया।  इस पर पार्वती बोलीं कि उन्हें अपने पिता को साथ लेकर आना चाहिए था। गणेश फिर भोलेनाथ की खोज करने निकल पड़े।भोलेनाथ से उनकी भेंट हरिद्वार में हुई।  उस समय भोले नाथ भगवान विष्णु व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। पार्वती से नाराज भोलेनाथ ने लौटने से मना कर दिया।  भोलेनाथ के भक्त रावण ने गणेश के वाहन मूषक को बिल्ली का रूप धारण करके डरा दिया।  मूषक गणेश को छोड़कर भाग गए। 

 

shiv and parvati playing dice

 

इधर भगवान विष्णु ने भोलेनाथ की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया था। गणेश ने माता के उदास होने की बात भोलेनाथ को कह सुनाई।  इस पर भोलेनाथ बोले,कि हमने नया पासा बनवाया है अगर तुम्हारी माता पुन: खेल खेलने को सहमत हों, तो मैं वापस चल सकता हूं। गणेश के आश्वासन पर भोलेनाथ वापस पार्वती के पास पहुंचे तथा खेल खेलने को कहा। इस पर पार्वती हंस पड़ी व बोलीं, अभी पास क्या चीज है, जिससे खेल खेला जाए। यह सुनकर भोलेनाथ चुप हो गए। इस पर नारद जी ने अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हें दी। इस खेल में भोलेनाथ हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फेंकने के बाद गणेश समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया। सारी बात सुनकर पार्वती जी को क्रोध आ गया। रावण ने माता को समझाने का प्रयास किया, पर उनका क्रोध शांत नहीं हुआ तथा क्रोधवश उन्होंने भोलेनाथ को श्राप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा।  नारद को कभी एक स्थान पर न टिकने का अभिशाप मिला। भगवान विष्णु को श्राप दिया कि यही रावण तुम्हारा शत्रु होगा तथा रावण को श्राप दिया कि विष्णु ही तुम्हारा विनाश करेंगे। कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने हमेशा बाल रूप में रहने का श्राप दे दिया…Next

 

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